मध्य प्रदेश देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक है इसीलिए इसके मौसम को समझने के लिए दो भागों पूर्वी और पश्चिमी में बांटा गया है। क्षेत्रफल के हिसाब से देखें तो पूर्वी और पश्चिमी मध्य प्रदेश दोनों का क्षेत्र लगभग बराबर है। ऐसा प्रायः देखा जाता है कि मध्य प्रदेश को मॉनसून सीजन में बाढ़ जैसी त्रासदी का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर पूर्वी मध्य प्रदेश में पश्चिमी भागों की तुलना में ज्यादा बारिश होती है। पश्चिमी मध्य प्रदेश में जहां 876 मिलीमीटर वर्षा होती है वहीं पूर्वी भागों में 1050 मिलीमीटर वर्षा रिकॉर्ड की जाती है।
दोनों क्षेत्रों में बारिश में यह अंतर क्यों है और क्यों मध्य प्रदेश को झेलनी पड़ती है बाढ़ की विभीषिका इसके लिए बहुत सारे कारण जिम्मेदार हैं।
जिनमें पहला कारण है इसकी भौगोलिक स्थिति: मध्य प्रदेश देश के केंद्र में है और मॉनसून सीजन में देश के दोनों ओर यानी अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उठने वाले ज्यादातर मौसमी सिस्टम मध्य प्रदेश होते हुए निकलते हैं। इसी वजह से पूर्वी और पश्चिमी मध्य प्रदेश में काफी अच्छी बारिश होती है। लेकिन कई बार यह मौसमी सिस्टम पश्चिमी मध्य प्रदेश पर ज़्यादा ही मेहरबान हो जाते हैं जिससे इस राज्य के पश्चिमी भागों में लगातार मूसलाधार वर्षा होती रहती है।
दूसरा कारण है मौसमी सिस्टमों का लंबे समय तक राज्य पर टिकना: मॉनसून सीजन में बनने वाले मौसमी सिस्टम आमतौर पर 8 से 10 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ते हैं और राज्य के सभी भागों को पार करने में लगभग 2 दिन का समय लग जाता है। कई बार और अधिक समय भी लगता है। यह निर्भर करता है सिस्टम की क्षमता पर। बंगाल की खाड़ी से उठने वाले मौसमी सिस्टम पूर्वी मध्य प्रदेश पर पहले पहुंचते हैं इसके बाद जैसे-जैसे यह आगे बढ़ते हैं, वैसे वैसे ही अरब सागर में भी मॉनसून में हवाएं जोर पकड़ने लगती हैं जिससे अरब सागर और बंगाल की खाड़ी दोनों ओर से आने वाली हवाएँ मध्य प्रदेश के ऊपर आपस में मिलकर जमकर बारिश देती हैं।
पश्चिमी विक्षोभ: उत्तर में आने वाला सशक्त पश्चिमी विक्षोभ भी मध्य प्रदेश के पश्चिमी भागों में बाढ़ का कारण बन जाता है। जबकि पूर्वी भागों तक पहुंचते-पहुंचते इसका प्रभाव कम हो जाता है जिससे पूर्वी मध्य प्रदेश को यह उतना अधिक प्रभावित नहीं कर पाता। उल्लेखनीय यह भी है कि जो सिस्टम जितना अधिक क्षमता वाला होगा वह उतनी ही धीमी गति से आगे बढ़ेगा।
जल स्रोत: मध्य प्रदेश में मौजूद अनेकों नदियां भी मध्य प्रदेश में बाढ़ का कारण बनती हैं। मुसलाधार बारिश की स्थिति में इन नदियों में जलस्तर खतरे के निशान के ऊपर हो जाता है और तट बंध टूट जाते हैं जिससे कई शहर जल मग्न हो जाते हैं।
आखरी और महत्वपूर्ण कारण है सिस्टमों की संख्या: पश्चिमी मध्य प्रदेश में अनेक मौसमी सिस्टम आते हैं जिसके कारण पश्चिमी भागों को मॉनसून सीज़न में प्रायः बाढ़ का सामना करना पड़ता है। एक के बाद एक कई सिस्टम मॉनसून सीजन में उठते हैं जिनके चलते पश्चिमी मध्य प्रदेश में मूसलाधार बारिश का सिलसिला लगातार जारी रहता है।
इस समय भी कहानी यही है क्योंकि मध्य प्रदेश के ऊपर एक सशक्त चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है जिससे राज्य में भारी बारिश हो रही है। पिछले 2 दिनों में पश्चिमी मध्य प्रदेश में भीषण बारिश हुई है। जबकि पूर्वी भागों में पश्चिम के मुकाबले कम वर्षा हुई। बीते 24 घंटों में खंडवा में 149 मिलीमीटर की भारी बारिश हुई। खरगोन में 79 मिलीमीटर, इंदौर में 70, गुना में 68, भोपाल और रायसेन में 54 मिलीमीटर, उज्जैन में 42, बेतूल में 33 सतना और खजुराहो में 26, उमरिया में 15, जबलपुर में 7 और छिंदवाड़ा में 2 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई।
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स्काईमेट वेदर के वरिष्ठ मौसम विशेषज्ञ जी पी शर्मा के अनुसार मध्य प्रदेश पर एक के बाद एक सक्रिय मौसम सिस्टम आते रहेंगे जिसके चलते पश्चिमी मध्य प्रदेश में मूसलाधार मॉनसून वर्षा अगले कुछ दिनों के दौरान जारी रहेगी। वर्तमान मौसमी सिस्टम के आगे निकलने के बाद बंगाल की खाड़ी में बना एक अन्य सिस्टम राज्य के ऊपर आएगा। उसके बाद भी तीसरा मौसम सिस्टम विकसित होने वाला है जिससे मध्य प्रदेश को बारिश देते रहेंगे। इसके चलते अनुमान इस बात का है कि राज्य के कई हिस्सों में अगले 9-10 दिनों तक मुसलाधार वर्षा होती रहेगी और कई इलाके बाढ़ की चपेट में रहेंगे। इसलिए मध्य प्रदेश के लोगों को सुझाव है कि भारी बारिश और बाढ़ की संभावना को देखते हुए सतर्क रहें सावधानी बरतें ताकि किसी मुसीबत का सामना ना करना पड़े।
Image credit: OneIndia
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