देश भर में किसानों की अत्महत्या के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता दिखते हुए केंद्र सरकार से पूछा है कि इससे निपटने के ठोस उपाय क्या हैं। गौरतलब है कि इस मामले में एक गैर सरकारी संगठन सिटीजन्स रिसोर्स एंड एक्शन एंड इनिशिएटिव की तरफ से देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से यह सवाल पूछा है। सोमवार को देश के मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि यह मुद्दा बेहद गंभीर है। इससे निपटने के लिए केंद्र को ठोस कदम उठाने चाहिए।
इस बीच स्काइमेट ने कल 2017 के लिए अपना मॉनसून पूर्वानुमान जारी कर दिया जिसके अनुसार इस बार मॉनसून का प्रदर्शन कमजोर रहने की संभावना है। स्काइमेट के पूर्वानुमान के अनुसार वर्ष 2017 में मॉनसून का प्रदर्शन 90 से 95 प्रतिशत के आसपास रह सकता है। इसमें भी सबसे चिंताजनक बात यह है कि महाराष्ट्र से लेकर, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु में सबसे कम मॉनसून वर्षा की उम्मीद है। यही वो राज्य हैं जहां सबसे अधिक किसान आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं।
अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार सबसे अधिक प्रभावित राज्यों महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु की सरकारों के साथ मिलकर प्रभावी नीति तैयार करे। पीठ ने केंद्र को निर्देश दिया कि उक्त सरकारों के साथ मिलकर किसानों की अत्महत्या के संदर्भ में उठाए जाने वाले प्रस्तावित कदमों की जानकारी अदालत में चार सप्ताह के भीतर जमा कराएं। हालांकि कोर्ट ने यह भी कहा कि कृषि राज्यों का विषय लेकिन समन्वय के लिए केंद्र सरकार इसमें हस्तक्षेप करे और राज्यों के साथ मिलकर किसानों की आत्महत्या के मूल कारणों तथा इससे निपटने के कारगर उपायों की योजना तैयार करे।
किसानों की अत्महत्या के मुख्य कारणों पर अगर नज़र डालें तो विपरीत मौसम जैसे कमजोर मॉनसून, सूखा, बाढ़ जैसी स्थितियों के चलते फसलों का चौपट होना, कर्ज़ का बोझ और फसलों की बेहद कम कीमत मिलना आदि हैं। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र का पक्ष रखने के लिए अदालत में उपस्थित अतिरिक्त महाधिवक्ता पी एस नरसिम्हा ने बताया कि केंद्र सरकार ने किसानों की अत्महत्या को रोकने के लिए कई उपाय किए हैं जिसमें किसानों से अनाज की सीधी खरीद, बीमा राशि बढ़ाने, ऋण का दायरा बढ़ाने और फसलों के नुकसान की स्थिति में मुआवज़ा देने जैसे कई उपाय शामिल हैं।
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