अल नीनो ने इस बार सबको चौंका दिया है, क्योंकि बीते कई महीनों के विदाई के रुझान के बाद यह मजबूत हो रहा है। जहां फरवरी तक इसके खत्म होने का रुझान देखने को मिल रहा था, वहीं अब इसने पलटी मारी है। आंकड़ों के अनुसार 4 फरवरी तक समुद्र की सतह का तापमान औसत से नीचे 0.3 डिग्री सेल्सियस पर बना हुआ था। उसके बाद अचानक स्थितियाँ बदलीं और बीते 2 हफ्तों के दौरान समुद्र की सतह के तापमान में बढ़ोत्तरी देखी गई।
अल नीनो एक ऐसा मौसमी पैमाना है जो हर बार न तो एक ही स्थान पर उभरता है और ना ही एक जैसा बर्ताव करता है। इन्हीं कारण से इसके लिए कोई नियमावली भी नहीं निर्धारित की जा सकती। लेकिन यह निश्चित तौर पर एक ऐसा मौसमी मापदंड है जो विश्व के बड़े क्षेत्र को प्रभावित करता है। इसी वजह से दुनियाभर के मौसम वैज्ञानिकों के नज़र अल नीनो पर होती है।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार फरवरी 2019 की शुरूआत से ही भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर की सतह का तापमान बढ़ने लगा है। विशेष रुप से पिछले पखवाड़े में तापमान में व्यापक वृद्धि देखने को मिली है। यही नहीं समुद्र की सतह से 200 मीटर की ऊंचाई तक भी तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। नीचे दिए गए टेबल में बीते दो महीनों के दौरान तापमान में वृद्धि को दर्शाया गया है।
मौसम विशेषज्ञ समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के लिए मैडेन जूलियन ओषीलेशन (MJO) की हलचल को जिम्मेदार माना जा रहा है। इसके कारण ट्रेडविंड कमजोर हुई हैं जिससे 2019 के वसंत ऋतु में अल नीनो के उभार की संभावना जनवरी के 50% से अब बढ़कर 60% प्रतिशत हो गई है।
ओषनिक नीनो इंडेक्स (ओएनआई) 3.4 क्षेत्र का तीन क्रमानुगत (ओवरलैपिंग) महीनों का औसत तापमान है, जिसने अब इस बात की संभावना को प्रबल किया है कि अल नीनो वापसी कर रहा है। अल नीनो के अस्तित्व की औपचारिक घोषणा तब की जाती है जब ओएनआई 3 ओवरलैपिंग महीनों में लगातार पांच बार 0.5 डिग्री सेल्सियस के बराबर हो या उससे अधिक दर्ज किया गया हो। ताजा आंकड़े दिसंबर-जनवरी-फरवरी के हैं जिसका औसत 0.8 डिग्री सेल्सियस है।
3 ओवरलैपिंग महीनों के दौरान पिछले 4 चरणों में रिकॉर्ड किए गए ओषनिक नीनो इंडेक्स ओएनआई नीचे दिया गया है।
जनवरी-फरवरी और मार्च का औसत तापमान अभी नहीं आया है जिसके बारे में संभावना है कि यह भी अल नीनो के पक्ष में जाएगा। मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि जनवरी-फरवरी-मार्च महीने के ओएनआई की औसत वैल्यू 13 मार्च तक 0.7 डिग्री है। मार्च खत्म होने में दो हफ्तों का समय बाकी है और हमें नहीं लगता कि औसत तापमान में कोई विशेष बदलाव आएगा।
मॉनसून 2019 पर अल नीनो का प्रभाव
अल नीनो के बारे में पहले से अनुमान लगा पाना काफी मुश्किल होता है,क्योंकि यह एक जटिल मौसमी घटना है। कहा जा सकता है कि अल नीनो अपने बर्ताव के लिए कुख्यात है। इसका सबसे अधिक असर उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों यानि भूमध्य रेखा के 23 डिग्री ऊपर और 23 डिग्री नीचे वाले क्षेत्रों पर सबसे अधिक पड़ता। इसी अल नीनो के कारण दक्षिण-पश्चिम मॉनसून कमजोर प्रदर्शन करता है और बारिश कम होती है।
अल नीनो चाहे कमजोर हो या प्रबल हो, दोनों ही स्थितियों में मॉनसून वर्षा पर असर डालता है। जनवरी तक इसके गिरावट के रुझानों के आधार पर ही स्काइमेट ने फरवरी में अपनी घोषणा में मॉनसून 2019 के सामान्य रहने की संभावना जताई थी। लेकिन अब स्थितियाँ सामान्य से कम बारिश के लिए प्रबल होती दिखाई दे रही हैं।
जनवरी तक जहां संकेत अल नीनो के खत्म होने के मिल रहे थे वहीं अब वेदर मॉडल्स संकेत कर रहे हैं कि मॉनसून 2019 के शुरू होने के समय पर अल नीनो के अस्तित्व में होने की संभावना 50% से अधिक है। हालांकि उस दौरान इसमें गिरावट का रुझान शुरू हो जाएगा, लेकिन गिरावट का क्रम बहुत धीरे-धीरे रहेगा।
भारत में कुल बारिश में सबसे अधिक तकरीबन 75% वर्षा मॉनसून सीज़न में होती है। चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है ऐसे में मिट्टी में नमी, बुआई, पौधारोपण और सिंचाई सहित खेती की निर्भरता मॉनसून के प्रदर्शन पर काफी हद तक टिकी होती है।
Image credit: Critic Brain
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