भूमध्य रेखा के पास समुद्र की सतह के तापमान का पिछले दिनों का रिकॉर्ड देखने पर लगा था कि अल नीनो कमजोर हो रहा है। इससे उम्मीद जगी थी कि दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2019 पर इसका असर अब कम होगा। लेकिन हाल के दिनों में अल नीनो में फिर से अचानक मजबूती देखने को मिली।
भारत के मॉनसून को मुख्यतः नीनो इंडेक्स 3.4 में होने वाले बदलाव प्रभावित करते हैं। नीनो इंडेक्स 3.4 में लगातार तीन सप्ताह तक तापमान गिरा था। लेकिन पिछले सप्ताह इसमें आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई। हालांकि पिछले दिनों नीनो इंडेक्स 3.4 रीजन में गिरावट के बावजूद तापमान नियत सीमा से ऊपर ही बना हुआ था।
नीचे दिए गए टेबल में प्रशांत महासागर के अलग-अलग क्षेत्रों में तापमान का स्तर देख सकते हैं:
यही नहीं नीनो 3.4 रीजन में क्रमानुगत तीन महीनों का समुद्र की सतह का तापमान, जिसे ओषनिक नीनो इंडेक्स (ओएनआई) कहते हैं, भी नियत सीमा से ऊपर बना रहा है। हालिया (अप्रैल-मई-जून) ओएनआई वैल्यू 0.7°C है।
ओषनिक नीनो इंडेक्स की औसत वैल्यू तीन महीन का औसत होता है। 8 चरणों के ओषनिक नीनो इंडेक्स की वैल्यू नीचे दिए टेबल में देख सकते हैं।
समुद्र की सतह के तापमान में लगातार गिरावट को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया की सरकारी मौसम एजेंसी ब्यूरो ऑफ मीटियोरॉलजि (बॉम) ने अल नीनो पर निगरानी वापस ले ली थी। बॉम का मानना था कि तापमान में गिरावट का क्रम इसी तरह जारी रहेगा। दुनिया की ज़्यादातर मौसम एजेंसियां जहां अल नीनो की नियत सीमा 0.5°C मानती हैं वहीं बॉम 0.8°C से ऊपर के तापमान को अल नीनो की नियत सीमा मानती है। यही कारण है कि अन्य एजेंसियों ने अल नीनो पर निगरानी को वापस नहीं लिया था।
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मौसम से जुड़े मॉडल अभी भी जुलाई में अल नीनो के अस्तित्व में होने की संभाव्यता 70 से 75% दिखा रहे हैं। यही नहीं बाकी मॉनसून सीजन में भी एल-नीनो के प्रभावी रहने की संभाव्यता 50% से ऊपर ही बनी रहेगी।
मॉनसून 2019 पर अल नीनो का असर
मॉनसून की शुरुआत से ही इस पर अल नीनो का प्रभाव रहने की आशंका जताई गई थी। इसका प्रमाण हैं जून में हुई बारिश के आंकड़े। जून में भारत में जून में होने वाली बारिश में 33% की भारी कमी रही। जुलाई में पहले पखवाड़े में देश के मध्य और पूर्वी भागों में अच्छी बारिश हो रही है। लेकिन अब जल्द ही मॉनसून में ब्रेक लगने वाली है।
आमतौर पर मॉनसून में ब्रेक की स्थिति अगस्त में देखने को मिलती है जब मॉनसून समूचे भारत में पहुँच चुका होता है। लेकिन इस बार स्थितियाँ अलग हैं क्योंकि अल नीनो मॉनसून की चाल को प्रभावित कर रहा है।
अल नीनो वर्षों में एक और चिंतित करने वाली बात होती है कि मॉनसून में ब्रेक का दौर लंबा चलता है। हालांकि मॉनसून को प्रभावित करने वाले अन्य मौसमी पहलू जैसे मैडेन जूलियन ओशीलेशन एमजेओ और इंडियन ओषन डायपोल मॉनसून के अनुकूल हैं। लेकिन माना जाता है कि अल नीनो इन सब में सबसे अधिक प्रभावी होता है जिससे जब अल नीनो अस्तित्व में होता है तो बाकी मौसमी सिस्टम अपना असर नहीं दिखा पाते हैं।
Image credit: Bloomberg
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