बीते एक सप्ताह में अल नीनो की स्थिति में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला, क्योंकि भूमध्य रेखा के पास समूचे प्रशांत महासागर क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान लगातार औसत से ऊपर बना रहा। हालांकि इस दौरान 3.4 नीनो इंडेक्स में मामूली बदलाव देखने को मिला, जबकि अन्य सभी जगह पहले की स्थितियां बरकरार नहीं। स्काईमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार नीनो इंडेक्स 3.4 में मामूली गिरावट दर्ज हुई, उसके बावजूद भी यह थ्रेशहोल्ड वैल्यू 0.5 डिग्री से काफी ऊपर बना रहा।
नीनो 3.4 क्षेत्र में समुद्र की सतह का 3 महीनों जनवरी-फरवरी-मार्च का औसत तापमान यानी ओ एन आई ओशनिक नीनों इंडेक्स 0.8 डिग्री सेल्सियस बना रहा। उसके बाद के दो त्रैमासिक चरणों यानी फरवरी-मार्च-अप्रैल और मार्च-अप्रैल-मई में भी तापमान पिछले स्तर पर ही रहने की संभावना है।
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इसके अलावा भी अन्य क्षेत्रों में समुद्र की सतह का तापमान पिछले 7 महीनों में मजबूत स्थिति में ही रहा। इसमें अक्टूबर महीने में तापमान चरम पर था, जो दिसंबर में गिरा और अपने न्यूनतम स्तर पर रिकॉर्ड किया गया। तापमान में एक बार फिर से वृद्धि का रुझान देखने को मिल रहा है और यह बढ़ते हुए जनवरी एवं फरवरी महीनों में थ्रेशहोल्ड वैल्यू को पार कर गया। अब फिर से हम देख रहे हैं कि इसमें हल्की गिरावट दर्ज की गई है।
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार तापमान में इस उतार-चढ़ाव के लिए अनेक पहलू जिम्मेदार हैं जो निम्नलिखित हैं:
- ओशन करंट एक डायनेमिक माध्यम है, जो समय-समय पर बदलता रहता है।
- हवा का दबाव और हवा की चाल भी समुद्र की सतह के तापमान को प्रभावित करने वाली एक अहम कारक है, जो निरंतर अल नीनो के अनुरूप बनी हुई है।
- मॉडन जूलियन ओषिलेशन (एम जे ओ) भी तापमान में कुछ बदलाव लेकर आता है। हालांकि इसकी प्रकृति स्थाई नहीं होती है। इसके शुरुआती चरण में समुद्र की सतह का पानी गर्म हो जाता है, जबकि इसके निकलते समय पानी अपेक्षाकृत ठंडा हो जाता है। एमजेओ हाल ही में प्रशांत महासागर से गुजरा है, जो तापमान में हाल ही में आई गिरावट का प्रमुख कारण हो सकता है।
मॉनसून 2019 पर पड़ेगा प्रभाव
मॉनसून का समय धीरे-धीरे नजदीक आता जा रहा है, लेकिन प्रशांत महासागर लगातार सभी क्षेत्रों में उत्तरोत्तर गर्म बना हुआ है, और जैसा कि पहले बताया गया था कि दक्षिण पश्चिम मानसून 2019 पर बढ़ते तापमान का प्रमुखता से प्रभाव पड़ेगा, खासकर मॉनसून के शुरुआती महीने जून में इसका सबसे बुरा असर देखने को मिल सकता है।
इसको ध्यान में रखते हुए स्काईमेट ने अपने मॉनसून पूर्वानुमान में जून में अकाल पड़ने की आशंका जताई है। स्काइमेट के अनुसार संभावना है कि जून में 77% बारिश दर्ज की जाएगी। लेकिन चूँकि यह अल नीनो की विदाई का वर्ष होगा ऐसे में जुलाई में स्थितियां कुछ सुधर सकती हैं और 91% मानसून वर्षा हो सकती है। इसके बावजूद जुलाई भी सामान्य से कम वर्षा के साथ विदा होगा।
मॉनसून के 4 महीनों में अगस्त एकमात्र ऐसा महीना होगा जिससे कुछ बेहतर की उम्मीद की जा रही है। अगस्त में सामान्य से कुछ बेहतर 102% बारिश की संभावना है। सितंबर में भी कमोबेश हाल ऐसा ही रहेगा और उम्मीद 99% बारिश की है।
हालांकि मॉनसून के कमजोर होने का एकमात्र कारण अल नीनो ही नहीं होगा, बल्कि हिंद महासागर से गुजर रहा मॉडन जूलियन ओषिलेशन भी जिम्मेदार होगा जिससे मॉनसून पर असर पड़ेगा। इसके अलावा इंडियन ओशन डाइपोल आईओडी भी मॉनसून के शुरुआती दो महीनों में तटस्थ स्थिति में रहेगा जबकि आखिरी दो महीनों में सकारात्मक स्थिति में पहुंचेगा।
यह दोनों पहलू भी मॉनसून को बेहतर करने में अगस्त और सितंबर में खासकर अपनी भूमिका निभाएंगे। हालांकि इन दो महीनों में जो बारिश होगी वह शुरुआती दो महीनों में बारिश की रह गई कमी की भरपाई करने में नाकाम होगी। परिणाम समग्रता में मॉनसून 2019 कमजोर रहेगा और दीर्घावधि औसत के मुक़ाबले 93% बारिश इस बार देखने को मिलेगी।
Image Credit: The Indian Express
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