तमाम आशंकाओं और कयासों के बीच आखिरकार अल-नीनो के उभरने के लिए स्थितियाँ अनुकूल बन गई हैं। स्काइमेट के अनुसार सभी डाइनामिकल और स्टेटिस्टिकल मॉडल संकेत कर रहे हैं अक्तूबर 2018 से दिसम्बर 2018 के बीच अल नीनो की स्थित कमजोर से मध्यम के बीच रहेगी जबकि 2018-19 की सर्दियों में भी अल नीनो का अस्तित्व रहेगा और धीरे-धीरे यह और सशक्त होगा।
स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार दुनिया भर के लगभग 90% मॉडल का निष्कर्ष है कि नवंबर-दिसम्बर-जनवरी में अल नीनो के उभार पर रहने की संभावना 85 से 90 प्रतिशत है। नीचे दिए गए चित्र में इसे और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।
भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान औसत से ऊपर चल रहा है। हालांकि नीनो 1+2 क्षेत्र में इसमें हल्की गिरावट देखि जा रही है। नीनो इंडेक्स नीचे दिया गया है।
सितंबर महीने में नीनो 3.4 क्षेत्र में समुद्र की सतह का तापमान 0.34 °C, जिसे तटस्थ सीमा में माना जाता है। इसी से अल नीनो की स्थिति तय होती है। इस समय समुद्र की सतह का बढ़ गया है।
इसे अन्य मौसमी स्थितियों का भी साथ मिल रहा है। इनमें हवा को सबसे महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है। इस समय निचले स्तर पर पश्चिमी हवाएँ चल रही हैं, जो अल नीनो के आगमन संकेत हैं। मौसम विशेषज्ञों की नज़र में अल नीनो के कारण दुनियाभर में हवा की दिशा में बदलाव आता है जिससे विश्व भर में बारिश प्रभावित होती है।
अल नीनो काफी जटिल मौसमी स्थिति है। यही वजह है कि इसके बारे में स्पष्ट बताया जाना कठिन है। इसका प्रभाव मौसम पर काफी मुखर होता है। विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप और इससे नीचे के हिस्सों पर इसका व्यापक असर देखने को मिलता है और इसके चलते दक्षिण-पश्चिम मॉनसून कमजोर हो जाता है जिससे बारिश कम होती है।
अनुमान लगाया जा रहा है कि अप्रैल या मई 2019 में अल-नीनो ख़त्म हो जाएगा लेकिन अभी कहना मुश्किल है कि 2019 का मॉनसून इससे प्रभावित नहीं होगा। भले ही यह उतार पर होगा लेकिन इसमें इतनी क्षमता होती है कि चार महीनों के मॉनसून सीज़न को बड़े पैमाने पर प्रभावित करे। मौसम से जुड़े मॉडल संकेत कर रहे हैं कि मई-जून-जुलाई में अल नीनो उतार पर होगा।
दूसरी ओर दक्षिण भारत में आने वाले उत्तर-पूर्वी मॉनसून पर इसके असर की बात करें तो अल नीनो के चलते उत्तर पूर्वी मॉनसून या तो सामान्य रहता है या सामान्य से अधिक बारिश होती है।
इस बीच 2019 में ला नीना की संभाव्यता शून्य है। एल नीनो के बर्ताव में हर बार एक रूपता देखने को नहीं मिलती। हर बार इसके उभर और इससे प्रभावित होने वाले स्थान अलग-अलग हो सकते हैं। इसीलिए इसका कोई रोड मैप नहीं है जिससे मौसम वैज्ञानिकों को इसका मूड समझने में कठिनाई होती है। जबकि यह विश्व के अधिकांश हिस्सों के मौसम को प्रभावित करता है।
अल नीनो का उभरना एक ऐसी मौसमी घटना है जिसके स्थापित होने में काफी समय लगता है। इसके उभर पर होने से लेकर स्थापित होने तक की यात्रा में कभी भी एकरूपता नहीं होता है बल्कि कई उतार-चढ़ाव देखने को मिलते हैं। कई बार ऐसा भी होता है कि उभरते-उभरते यह रह जाए और इसके कोई स्पष्ट संकेत या कारण भी समझ में नहीं आते।
Image credit: Scroll.in
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