भारतीय उप-महाद्वीप में धीरे-धीरे मॉनसून का सीज़न करीब आ रहा है। इससे पहले देश के कुछ हिस्सों में प्री-मॉनसून गतिविधियां शुरू हो गई हैं। हालांकि मॉनसून शुरू होने में अभी लगभग तीन महीनों का समय बाकी है लेकिन मॉनसून के बारे में कयास लगाए जाने की शुरुआत हो चुकी है।
English version: Early forecasts of El Nino for Monsoon 2020 emerge, neutral conditions with more than 50 percent probability
मॉनसून की चाल बदलने वाले अल-नीनो के भी मॉनसून पर प्रभाव के बारे में मौसम वैज्ञानिकों के बीच मंथन शुरू हो गया है। सामुद्रिक स्थितियाँ मॉनसून के प्रदर्शन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार होती हैं। समुद्र की सतह का गर्म होना या सतह के तापमान में कमी होना भारतीय मॉनसून को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।
वर्ष 2019 में सितंबर के मध्य से अब तक के आंकड़े देखें तो प्रशांत महासागर सामान्य से काफी गर्म रहा है। विशेषतौर पर नीनो 3.4 क्षेत्र में पिछली तिमाही में तापमान 0.5 डिग्री या उसके आसपास ही रहा है।
वर्तमान में मौसम से जुड़े मॉडल संकेत कर रहे हैं कि मॉनसून के समय अल नीनो के तटस्थ रहने की संभावना 50% से अधिक है।
अल नीनो की घोषणा तब होती है जब नीनो 3.4 क्षेत्र में लगातार 5 क्रमानुगत अवधि में समुद्र की सतह का तापमान 0.5 डिग्री या उसके ऊपर रहे।
भारतीय मॉनसून पर एल नीनो के अलावा भी कुछ सामुद्रिक स्थितियाँ हैं, जिनका असर देखने को मिलता है। लेकिन एल नीनो सब में प्रमुख है। ओषनिक नीनो इंडेक्स यानि ओएनआई के अंतर्गत समुद्र की सतह का तापमान मापा जाता है। इसी के आधार पर यह तय किया जाता है कि अल नीनो की स्थिति होगी या नहीं।
यह भी उल्लेखनीय है कि भारत एक कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है। भारत की कुल खेती का तकरीबन 60% हिस्सा वर्षा पर निर्भर करता है। भारत में मॉनसून मुख्य बारिश का सीज़न है जिसका खासतौर पर खरीफ फसल पर सीधा असर पड़ता है। ऐसे में मॉनसून के कमजोर रहने से भारत की खेती का प्रभावित होना स्वाभाविक है।
Image credit: Critic Brain
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