भारत में इस वर्ष का मॉनसून सामान्य से 14 प्रतिशत कम रहा, इसके बावजूद देशभर में खरीफ़ फसलों की बुआई बढ़ी है। बीते वर्ष की 1017.86 लाख हेक्टेयर कुल बुआई के मुक़ाबले इस वर्ष 1031.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फसलें बोई गई हैं, जो 2014 के खरीफ से 13.51 लाख हेक्टेयर अधिक है। इसमें खाद्यान्नों के साथ-साथ तिलहन और दलहन फसलें भी शामिल हैं।
गन्ना और चावल की खेती पिछले वर्ष के स्तर पर ही रहीं। यानि कि इन दोनों फसलों की खेती का दायरा ना बढ़ा और ना ही घटा। दुनिया में गन्ना उत्पादन के मामले में भारत ब्राज़ील के बाद दूसरे नंबर पर है। चावल उत्पादन में भी चीन के बाद भारत का स्थान आता है।
कपास उत्पादन में चीन के बाद भारत दुनिया में दूसरे स्थान पर है। हालांकि इस बार कपास की खेती में अच्छी ख़ासी गिरावट देखने को मिली है। देश भर में इस वर्ष कपास की खेती में 10.14 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। मॉनसून की कमज़ोरी और बीते वर्षों के कपास के किसानों के अनुभव अच्छे नहीं होने के कारण कपास की बुआई घटकर 116.41 लाख हेक्टेयर रही।
बुआई में सबसे अच्छा उछाल दलहन फसलों में देखने को मिला है। वर्ष 2014-15 में जहां 102.56 लाख हेक्टेयर में दलहन फसलों की खेती की गई थी वहीं 2015-16 फसल सत्र में खेती का दायरा बढ़कर 114.58 लाख हेक्टेयर हो गया है। अरहर, मूंग और उड़द की खेती के लिए धान और गन्ने की अपेक्षा कम पानी की आवश्यकता होती है। इसके अलावा इस बार दाल की ऊंची कीमतों और सरकार द्वारा अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी दिये जाने की घोषणा ने भी किसानों को दलहन फसलों की खेती बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
ज्वार, बाजरा और मक्के की खेती भी 2014 के मुक़ाबले अधिक हुई है। सोयाबीन और तिल की खेती में भी इस बार बढ़ोत्तरी देखने को मिली है।
स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों के अनुसार मॉनसून के शुरुआती महीनों जून और जुलाई में देश भर में अच्छी बारिश हुई जिससे खेती का दायरा बढ़ाने में मदद मिली। हालांकि अगस्त और सितम्बर के महीनों में बारिश की मात्रा और इसके दायरे में काफी कमी आ गई जिसके चलते धान की रोपाई/बुआई प्रभावित हुई।
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