भारत और पाकिस्तान तमाम मुद्दों पर बात करने से कतराते रहते हैं। लेकिन टिड्डियों के हमले ने दोनों देशों को करीब ला दिया है। हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच इस मुद्दे पर तीन बार बैठकें हो चुकी हैं।
टिड्डियों के हमले में वर्ष 2019 में भारत के राजस्थान और गुजरात में बड़े पैमाने पर फसलों का नुकसान हुआ। विश्लेषकों के अनुसार इस बार भी भारत और पाकिस्तान के कई जिलों में टिड्डियों का हमला हुआ है। पाकिस्तान को राष्ट्रिय आपदा घोषित करनी पड़ी है। विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले वर्ष के मुक़ाबले इस वर्ष जून में टिड्डियों का और बड़ा हमला हो सकता है।
भारत के कृषि मंत्रालय के अनुसार जून 2020 में टिड्डियों का प्रकोप 2 लाख हेक्टेयर में हो सकता है। मंत्रालय को डर है कि जून 2020 में मॉनसून के आगमन से पहले वसंत ऋतु में दक्षिण-पूर्वी ईरान और इससे सटे पाकिस्तान पर पनपे टिड्डियों का दल पिछले साल की तुलना में बड़ी संख्या में भारत और पाकिस्तान का रुख करेंगे।
केंद्र सरकार टिड्डियों के खतरे को देखते हुए इनसे निपटने के लिए दवाओं के छिड़काव के लिए आधुनिक तकनीकि का इस्तेमाल करने की तैयारी कर रही है। इसके लिए छिड़काव करने में सक्षम हेलीकोप्टर्स और ड्रोन जैसे संसाधनों को खरीदने की तैयारी चल रही है। खबरों के अनुसार ऐसे 60 छिड़काव यंत्र खरीदे जा सकते हैं।
English Version: Locust attack: common enemy unites India and Pakistan, national emergency declared in Pak
टिड्डियों के हमले को केंद्र सरकार गंभीरता से ले रही है। इसके लिए गृह मंत्रालय, नागरिक उड्डयन मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय पारस्परिक रूप से चर्चा कर रहे हैं और इससे निपटने के लिए उपाय तलाश रहे हैं।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में टिड्डियों के हमले से निपटने में भारत के प्रयासों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संघ ने प्रशंसा की थी।
भारत ने वर्ष 1993 में भी इसी तरह की स्थिति का सामना किया था। भारत में 2 लाख का भू क्षेत्र टिड्डियों के निशाने पर होता है जिसमें राजस्थान के 8 ज़िले और गुजरात के 2 ज़िले शामिल हैं। यह पूरा क्षेत्र पंजाब राज्य के लगभग बराबर है।
भारत के अलावा कई अन्य पश्चिमी एशियाई और अफ्रीकी देश भी रेगिस्तानी इलाकों से उठाने वाले टिड्डियों के निशाने पर होते हैं। लगभग 160 लाख भू क्षेत्र पर टिड्डियों का खतरा रहता है।
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