सर्दियों में हवा के कमज़ोर होते ही प्रदूषण दिल्ली का गला दबाने लगता है। हवा की दिशा बदलने पर भी राजधानी में प्रदूषण व्यापक रूप में बढ़ जाता है। दिल्ली में उत्तर-पश्चिमी मध्यम हवाएं चलने की स्थिति में वातावरण स्वच्छ बना रहता है जबकि दक्षिण-पूर्वी हवाएँ चलने पर धुंध और धुएँ की चादर तन जाती है। यही नहीं उत्तर-पश्चिमी हवाओं के कमजोर पड़ने पर भी दिल्ली का प्रदूषण क्रूर रूप धारण कर लेता है।
दक्षिण-पूर्व से आने वाली हवाएं अपेक्षाकृत आर्द्र होती हैं जिसकी वजह से राष्ट्रीय राजधानी में धुंध बढ़ती है। धूल, धुआँ, कार्बन और अन्य गैसों सहित प्रदूषण के कण इसी धुंध में लिपट कर दिल्ली के वातावरण को अशुद्ध कर देते हैं। ऐसे में कमज़ोर हवाएँ राजधानी के ऊपर वायुमंडल के निचले स्तर में घुले प्रदूषण को साफ नहीं कर पाती हैं। निचली हवाओं में घुला प्रदूषण घनी धुंध के रूप दिखाई देता है और व्यापक रूप में प्रभावित करता है।
यानी कि दिल्ली के प्रदूषण में मौसम का मिजाज बहुत मायने रखता है। इस समय उत्तर-पश्चिमी हवाएँ कमज़ोर हो गई हैं और इसकी जगह पश्चिमी हवाएँ चलने लगी हैं जिससे प्रदूषण फिर से वापस लौट आया है। हालांकि यह प्रदूषण अक्टूबर के आखिर से 15 नवंबर तक दिल्ली का दम घोंट रहे प्रदूषण जितना जानलेवा नहीं होगा। दिल्ली के प्रदूषण में पड़ोसी राज्यों का भी योगदान होता है। पिछले दिनों पंजाब और हरियाणा से आ रहे फसलों के धुएँ से दिल्ली का प्रदूषण भयानक स्तर पर पहुँच गया था।
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दिल्ली के प्रदूषण में 15 नवंबर के बाद व्यापक गिरावट आई। बर्फबारी के बाद पहाड़ों से होकर आ रही ठंडी उत्तर-पश्चिमी तेज़ हवाओं ने दिल्ली में सर्दी भी बढ़ा दी। इस बीच हवाओं का रुख बदलकर पश्चिमी होने से दिल्ली में धुंध बढ़ने लगी है। अनुमान है कि 28 और 29 नवंबर को भी पश्चिमी या दक्षिण-पश्चिमी हवाएँ चलेंगी जिससे अगले 2-3 दिनों के दौरान प्रदूषण और बढ़ जाएगा।
प्रदूषण के तौर पर धुआं, हानिकारक गैसें और अन्य प्रदूषण के कण दिखाई हवाओं में घुलकर दिल्ली को अगले कुछ दिनों के लिए फिर से परेशान करेंगे। लेकिन इस बार प्रदूषण के लिए दिल्ली खुद जिम्मेदार होगी क्योंकि अब पड़ोसी राज्यों में फसलों का अवशेष जलाया जाना बंद हो गया है।
प्रदूषण को कम करने के लिए एनजीटी सहित अन्य एजेंसियों ने सख़्त निर्देश और हिदायतें दी हैं। बावजूद इसके नियमों का उल्लंघन बदस्तूर जारी है और आम लोग भी प्रदूषण को लेकर संवेदनशील नहीं है। उड़ती धूल, जलता कूड़ा और छोटी-बड़ी गाड़ियों से निकलता काला धुआँ अब भी दिखाई देना आम है, जो प्रदूषण को प्रबल बनाने में अहम योगदान दे रहा है।
Image credit: Reuters India
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