राष्ट्रीय राजधानी और आसपास के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक लंबे समय से बेहद खराब चल रहा है। लगातार बढ़ते प्रदूषण से दिल्ली-एनसीआर में लोग परेशान हैं। सांस से जुड़ी बीमारियाँ बढ़ रही हैं। दिल्ली में बड़ी संख्या में वाहन और क्षमता से अधिक जनसंख्या का दबाव प्रदूषण को जानलेवा बना रहे हैं। सर्दियों में जब तापमान कम हो जाता है और हवा में नमी बढ़ जाती है तब स्थानीय स्तर पर उठने वाला धुआँ और धूल यानि पीएम 2.5 और पीएम 10 हवा में नीचे ही स्थाई डेरा डाल लेते हैं और लोगों का जीना मुहाल कर देते हैं।
प्रदूषण से राहत तभी मिलती है जब उत्तर-पश्चिमी दिशा से ठंडी और शुष्क हवाएँ चलें या अच्छी बारिश हो। इस सीज़न में हवाएँ छोटे-छोटे अंतराल पर आती तो रही हैं लेकिन बारिश ना के बराबर हुई है। आंकड़ों पर नज़र डालें तो मॉनसून के बाद 1 अक्टूबर से 10 दिसम्बर के बीच मात्र 3.8 मिलीमीटर बारिश रिकॉर्ड की गई है। जो सामान्य से 87 प्रतिशत कम है। यानि आमतौर पर अक्टूबर से लेकर दिसम्बर के मध्य तक लगभग 30 मिलीमीटर बारिश होती है। जबकि हुई है 4 मिमी से भी कम।
बारिश में कमी भी मुख्य वजह है जिससे दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता सूचकांक लंबे समय से 400 के आसपास या उससे भी ऊपर बना हुआ है। मौसम विशेषज्ञों की मानें तो अगले दो-तीन दिनों तक इस प्रदूषण से राहत मिलने की संभावना नहीं है। हालांकि 11 और 12 दिसम्बर को दिल्ली और आसपास के शहरों में बारिश की झलक मिल सकती है लेकिन यह बारिश जानलेवा प्रदूषण को साफ नहीं कर पाएगी।
पिछले दो दिनों से जम्मू कश्मीर के अधिकांश भागों और हिमाचल प्रदेश में कुछ स्थानों पर बर्फबारी हो रही है। अगले 24 घंटों में पश्चिमी विक्षोभ कश्मीर से आगे निकल जाएगा और बर्फबारी बंद हो जाएगी। उसके बाद अगले कुछ दिनों तक कोई भी प्रभावी सिस्टम पहाड़ों के पास आता दिखाई नहीं दे रहा है, जिससे उत्तर-पश्चिमी हवाएँ 14 दिसम्बर से लंबे समय के लिए मैदानी इलाकों में अपना डेरा जमाएंगी। तब अगले कुछ दिनों के लिए राजधानी दिल्ली सहित नोएडा, गाजियाबाद, गुरुग्राम और फरीदाबाद में सर्दी बढ़ेगी और प्रदूषण से भी अच्छी राहत मिलेगी।
Image credit: CNN
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