वायु प्रदूषण दिल्ली शहर को दुनिया में हर साल बदनाम कर रहा है। बीते चार-पांच वर्षों में प्रदूषण साल दर साल बढ़ता गया है। इससे निपटने के लिए दिल्ली सरकार, केन्द्र सरकार सहित अन्य एजेन्सियां भी समय-समय पर सक्रिय हो जाती हैं। इसी क्रम में दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने 4 नवम्बर से 15 नवम्बर के बीच दिल्ली ऑड-ईवन योजना लागू की थी।
अब बढ़ते वायु प्रदूषण से निपटने के लिए केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की सरकारों से उस कानून में बदलाव करने को कह सकती है, जिसमें धान की बुआई 15 जून से पहले करने पर रोक लगाई गई है। पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारियों का मानना है कि अगर हरियाणा और पंजाब के किसानों को 15 दिन पहले बुआई का मौका मिल जाए तो दिवाली के आसपास पराली जलाने की समस्या से काफी हद तक निपटा जा सकता है। इस संबंध में राज्यों से शुरुआती बातचीत भी की गई है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पंजाब और हरियाणा 15 जून से पहले यानि मॉनसून आने से पहले धान की बुआई को इसलिए रोका गया था ताकि भूजल का अत्यधिक दोहन ना हो। इसके लिए पंजाब प्रिजर्वेशन ऑफ सब-सॉयल वॉटर एक्ट-2009 और हरियणा प्रिजेर्वेशन ऑफ सब-सॉयल एक्ट-2009 बनाए गए। इससे पंजाब में धान की बुआई 20 जून से पहले और हरियाणा में 15 जून से पहले करना प्रतिबंधित कर दिया गया।
इन का़नूनों के बनने से पहले इन राज्यों में मई के आखिर में धान की बुआई शुरू होती थी और जून के पहले हफ्ते तक बुआई लगभग पूरी हो जाती थी।
पंजाब और हरियाणा भारत के समृद्ध कृषि उत्पादक राज्यों में से हैं। यहा किसान उन्नत खेती की विधियां इस्तेमाल करते हैं। बिजली मुफ्त होने के कारण मई के आखिर में बुआई इन राज्यों के किसानों के लिए किसी प्रकार से चुनौती नहीं थी। लेकिन इससे जलस्तर में भारी कमी आने लगी थी, इसे देखते हुए ही बुआई के संबंध में क़नून बनाए गए।
2010 से बढ़ने लगा है प्रदूषण
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की मानें तो दिल्ली में प्रदूषण तब से बढ़ा है जब से ये कानून बने हैं। इन कानूनों के कारण पंजाब और हरियाणा में देर से धान की बुआई और देर से कटाई होने लगी। जब उत्तर भारत में हवा में नमी बढ़ने लगती है और तापमान में कमी आने लगती है तब पराली का धुआं दिल्ली के अपने प्रदूषण में घुलकर दिल्ली को गैस चैंबर में तब्दील कर देता है।
अक्टूबर से हवा में नमी बढ़ने के कारण प्रदूषण होता है विकराल
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार अक्टूबर से उत्तर भारत में हवा में नमी बढ़ जाती है, जो हमें ओस की बूंदों के रूप में दिखाई भी देती है। इसी समय जब भी हवा की रफ्तार में कमी आती है प्रदूषण के कण और धुआँ हवा में निचले स्तर पर टिक जाते हैं और दिल्ली-एनसीआर पर स्मोग की चादर तन जाती है। ऐसे में अगर अक्टूबर के आखिर में और नवंबर की शुरुआत में पंजाब और हरियाणा में धान की कटाई का काम होता है तो उस दौरान पराली का धुआँ भी इस प्रदूषण को व्यापक रूप में बढ़ा देता है।
केंद्र सरकार की कोशिश है कि नियमों में पंजाब और हरियाणा ढील दें ताकि दिवाली से पहले-पहले तक धान की कटाई और मड़ाई का काम हो जाए जिससे प्रदूषण के इस प्रमुख श्रोत पर लगाम लग सके।
Image credit: The Statesman
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