हमारा अनुमान है कि जुलाई में भी मॉनसून सामान्य रहने वाला है, भले ही इसकी शुरुआत सुस्त होगी। लेकिन जुलाई के बारे में और विस्तार से बात करने से पहले मैं यहाँ जून का ज़िक्र ज़रूरी समझता हूँ। दक्षिण पश्चिम मॉनसून देश के सभी भागों में समय से थोड़ा पहले ही पहुँच गया। जून में देश में सामान्य से 16% अधिक बारिश हो चुकी है। किसी भी अल नीनो वाले वर्ष के जून में यह सबसे अधिक बारिश है। मॉनसून अपने आखिरी पड़ाव पर पश्चिमी राजस्थान में 26 जून को पहुंचा, जहां इसका आगमन आमतौर पर 15 जुलाई को होता है।
हमने अप्रैल में अनुमान लगाया था कि जून में सामान्य या सामान्य से अधिक लगभग 107% बारिश होगी, लेकिन जून की बारिश हमारी अपेक्षाओं को भी पार कर गई।
अगर मुझे ठीक-ठीक याद है तो, पिछले 10 वर्षों में जून माह में होने वाली बारिश का इस वर्ष सबसे अच्छा वितरण है। सभी चार क्षेत्रों में सामान्य बारिश हुई है। भारत के 95% हिस्सों में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई है। फसलों की बुआई पूरे देश भर में अपने शबाब पर है। अब तक भारत में 16.56 मिलियन हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है जो पिछले वर्ष के मुक़ाबले 3.14 मिलियन हेक्टेयर यानि लगभग एक चौथाई अधिक है। धान की बुआई/रोपाई 2.33 मिलियन हेक्टेयर में हुई है, जो सामान्य से 6% पीछे है। इसका कारण उत्तर प्रदेश और बिहार में मॉनसून के पहुँचने में देरी है। हालांकि मेरा अनुमान है कि यह जल्द ही रफ्तार पकड़ेगा। दलहन फसलों की बुआई 1.1 मिलियन हेक्टेयर हो चुकी है, जो फिछले वर्ष के बराबर है; तिलहन फसलें 1.79 मिलियन हेक्टेयर में बोई गई हैं, जो पिछले वर्ष के मुक़ाबले 400% अधिक है। मोटे अनाजों की बुआई गत वर्ष के मुक़ाबले 16% अधिक - 1.93 मिलियन हेक्टेयर में हुई है। कपास भी 3.48 मिलियन हेक्टेयर में बोया जा चुका है, जो पिछले वर्ष के मुक़ाबले 20% अधिक है।
अब जुलाई पर आते हैं। हमने अप्रैल में जुलाई के लिए 104% बारिश का अनुमान लगाया था। हम आज भी उसी पर कायम हैं। जुलाई में बारिश में उतार-चढ़ाव आमतौर पर ± 16% का आता है, और हमारा आंकलन है कि जुलाई में कुल बारिश समान रहेगी। (जुलाई में दीर्घावधि की औसत वर्षा 289 मिलीमीटर है, जो 84% से 116% की स्थितियों में सामान्य बारिश मानी जाएगी)। जुलाई में उत्तर, पूर्व, पश्चिम और मध्य भारत सबसे बड़े लाभार्थी होंगे। देश के दक्षिण प्रायद्वीपीय भागों को नुकसान हो सकता है। विशेषतः उत्तरी आंतरिक कर्नाटक, दक्षिणी आंतरिक कर्नाटक, तमिलनाडु और मराठवाड़ा में शुष्क मौसम के लंबे दौर की आशंका है।
जुलाई में मॉनसून में एक लंबे अंतराल की आशंका रहती है। हम इससे सहमत नहीं हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसा कोई लंबा अंतराल होने वाला है, हालांकि मेरा मानना है कि 2 से 6 जुलाई के बीच मॉनसून एक ब्रेक ले सकता है। हमारे आंकलन के अनुसार जुलाई में झमाझम बारिश के तीन अच्छे दौर (6-8, 14-17, 23-26) देखने को मिल सकते हैं; और चौथा दौर 30 जुलाई से 2 अगस्त के बीच हो सकता है। 6 से 8 जुलाई के पहले दौर मैं उत्तर, मध्य और पूर्वी भारत में बारिश की झड़ी लग सकती है।
मैडेन जूलियन ओशीलेशन (MJO) के चलते जून में अच्छी बारिश हुई। हमारा अनुमान है कि यह फिर से जुलाई के दूसरे पखवाड़े में वापस आएगा और भारत में बारिश को बढ़ाने में सहायक होगा।
अल नीनो मजबूत है और हमने अपने मॉनसून पूर्वानुमान में इसको भी अहमियत दी थी। लेकिन इस बार अनूठे तरह का अल नीनो प्रभाव है। अल नीनो सितंबर-अक्तूबर-नवम्बर (SON) 2014 में शुरू हुआ। यह फरवरी में कमजोर हुआ औए फिर से प्रभावी होने लगा। इससे पहले 1986-87 ऐसे वर्ष रहे हैं जब एक के बाद एक दोनों वर्षो में सूखा पड़ा, उस समय अल नीनो लगातार मजबूत होता गया था। इंडियन ओशन डायपोल (हिन्द महासागर द्विध्रुव) इस समय तटस्थ है, लेकिन अगस्त में इसके अनुकूल होने के पूरे संकेत हैं, जो मॉनसून के लिए अच्छा है।
मैं यहाँ यह भी स्पष्ट करना चाहूँगा कि 2015 में सूखा तभी पड़ सकता है जब जुलाई और अगस्त दोनों महीनों में बारिश की कमी का आंकड़ा 20% या उससे ज़्यादा हो जाए। इसकी संभावना बेहद कम है। अगर जुलाई, अगस्त और सितंबर में क्रमशः 8, 10 और 20% कम बारिश दर्ज की जाती है तब भी यह वर्ष सूखा नहीं कहलाएगा।
इस बात को मैं फिर से दोहराना चाहूँगा कि हम अप्रैल में जारी किए गए 102% दीर्घावधि वर्षा के अपने पूर्वानुमान में किसी तरह का बदलाव किए बिना उसी पर कायम हैं। स्काइमेट का अनुमान है कि 2015 में मॉनसून सामान्य रहने वाला है।
Feature Image Credit: -The Hindu Businessline