इस वर्ष ला नीना के प्रभाव से उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी की उम्मीद है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली सहित राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश के कई जिलों में शीतलहर चलने की भी संभावना है। मानसून के बिना हो जाने के बाद जब उत्तर भारत में सर्दियां बढ़ने लगती है तथा हवाओं की दिशा भी उत्तर पश्चिम हो जाती है उस समय वायु प्रदूषण भी बढ़ने लगता है। वायु प्रदूषण बढ़ने का सबसे अहम कारण तापमान का कम होना तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश हरियाणा पंजाब तथा मध्य पाकिस्तान में पराली जलने की प्रक्रिया से जोड़ा जा सकता है।
जब उत्तर भारत में तापमान कम होने लगते हैं उस समय सुबह के समय धुंध कुहासा तथा कोहरा छाने लगता है। ठंडी हवा भारी हो जाती है तथा वह जमीन के आसपास ही रहती है। कोहरे और कुहासे के साथ धूल हुए तथा प्रदूषण के करण मिल जाते हैं। यदि हवाओं की रफ्तार बहुत कम हो तो यह स्मॉल बन जाता है तथा धरती के आसपास ही बना रहता है। हवाओं की रफ्तार कम होने के कारण यह वायु प्रदूषण अधिक क्षेत्रफल में नहीं चल पाता तथा इसमें नए धूल और धुएं के कारण जुड़ते रहने से यह काफी खतरनाक रूप ले लेता है।
वायु प्रदूषण से राहत मिलने के लिए दो मौसमी कारण बहुत अधिक जरूरी है। इसमें से पहला तेज वर्षा है। यदि उत्तर भारत में तेज वर्षा होती है तो धूल और धुएं के कारण भूल जाते हैं तथा वातावरण साफ होने लग जाता है। दूसरा महत्वपूर्ण कारक एक ही दिशा से लगातार तेज हवाओं का चलना होता है। सर्दी के मौसम में उत्तर पश्चिम दिशा जब तेज हमारे चलती है तो यह तेज हवाएं वायु प्रदूषण को काफी दूर तक फैला देती है जिससे काफी राहत मिलती है। इस समय दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई शहरों में वायु प्रदूषण अपने चरम पर है। आज, 6 नवंबर की दोपहर से उत्तर पश्चिम दिशा से तेज हवाएं चलने की उम्मीद है जिसके प्रभाव से वायु प्रदूषण से काफी राहत मिल सकती है।
कड़ाके की सर्दी हमेशा अधिक वायु प्रदूषण का कारण नहीं बन पाती है। क्योंकि बीच-बीच में लक्ष्मी चौक के आने के कारण उत्तर भारत में वर्षा होती है जो प्रदूषण को कम करती है। पश्चिमी विक्षोभ के आगे बढ़ जाने के बाद तेज हवाएं चलती है जिससे प्रदूषण में राहत मिलती है।