अप्रत्याशित और अस्थिर मौसम का बुरा असर भारतीय कृषि पर लगातार बढ़ता जा रहा है। मॉनसून की मार हो या सूखे की तबाही दिनों-दिन भारतीय कृषि को अनिश्चित मौसम से जूझना पड़ रहा है। इसके फलस्वरूप कृषि उत्पादन में कमी हो रही और भारत का कृषि उत्पादों का निर्यात भी घट रहा है। इस बड़ी चिंता को एक बार फिर से भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उठाते हुए कहा है कि बीते कुछ दशकों से भारत की कृषि को आगे बढ़ाने के लिए कई आधुनिक बदलाव किए गए हैं, बावजूद इसके देश की कृषि को मौसम से सुरक्षित बनाया जाना अभी बाकी है।
कृषि उद्योग की खबरों के अनुसार देश में कृषि योग्य 140 मिलियन हेक्टेयर भूमि में से लगभग 120 मिलियन हेक्टेयर भू-भाग ऐसा है जिसकी गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। राष्ट्रपति ने कहा कि जल की उत्पादकता पर ध्यान देने की बजाए हमें कृषि में पानी का इस्तेमाल समझदारी और निपुणता से करने पर ज़ोर देने की ज़रूरत है।
मौसम किस तरह से भारत की कृषि को प्रभावित कर रहा है इसे हम देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन के आंकड़ों के माध्यम से समझ सकते हैं। भारत में वर्ष 2013-14 में कुल खाद्यान्न उत्पादन जहां 265 मिलियन टन था वहीं 2014-15 में 4% घटकर 253 मिलियन टन पर आ गया।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का मानना है कि नई और आवश्यक तकनीकी के विकास, समयबद्ध मौसम के पूर्वानुमान, आधुनिक कृषि तकनीकि अपनाने और खेतों की मिट्टी को स्वस्थ बनाने के प्रावधान आदि ऐसे उपाय हैं जिन्हें भारत के कृषि क्षेत्र में शुरू करने की ज़रूरत है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के वैज्ञानिक तमाम फसलों का अध्ययन करते हैं। वैज्ञानिकों ने भारत की दो प्रमुख फसलों गेहूं और धान सहित ज्वार तथा मक्के की फसलों पर भी जलवायु परिवर्तन के पड़ने वाले प्रभाव का समझने के लिए एक किस्म के फसल विकास मॉडल का अध्ययन किया है। जलवायु परिवर्तन का भारत की कृषि पर व्यापक रूप में असर पड़ रहा है इसलिए इसे आवश्यक उपायों के जरिए जलवायु अनुकूल बनाया जाना समय की मांग है।
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