[Hindi] [CEO'S TAKE] मॉनसून 2015 का संशोधित पूर्वानुमान

August 3, 2015 7:38 PM | Skymet Weather Team

जून में औसत से 16% अधिक बारिश हुई, जबकि जुलाई -15% (15% की कमी) पर सम्पन्न हुई। बारिश का यह आंकड़ा सामान्य के आसपास है परंतु हमारे प्रारम्भिक अनुमान (+4%) से कम है। मॉनसून लगभग आधा बीत गया है और जून-जुलाई में 452 मिलीलीटर बारिश दर्ज की गई है, जो दीर्घावधि की 96% है। जैसा कि अनुमान लगाया था, जुलाई में देश के मध्य, उत्तरी और पूर्वी हिस्से फायदे में रहे हैं तथा दक्षिण भारत के क्षेत्रों को कम बारिश मिली है। तुलनात्मक रूप में देखें तो 2014 में जुलाई तक बारिश में 22% की कमी थी, जिसमें 19 उप-डिवीजनों में बारिश पीछे चल रही थी जबकि 17 उप-डिवीजनों में सामान्य वर्षा दर्ज की गई थी। जुलाई तक सामान्य से अधिक बारिश कहीं नहीं हुई थी। इस वर्ष 6 उप-डिवीजनों में सामान्य से अधिक वर्षा हुई है। 17 उप-डिवीजनों में सामान्य बारिश हुई है जबकि 13 उप-डिवीजनों में औसत से कम वर्षा रिकॉर्ड की गई है।

जुलाई की बारिश के मद्देनज़र अगस्त एवं सितंबर का पूर्वानुमान जारी करते हुए हम अपना मॉनसून पूर्वानुमान संशोधित कर रहे हैं। हमारा संशोधित अनुमान 98% (सामान्य) वर्षा का है। अप्रैल 2015 में हमने 102% (+/-4%, 4% की कमी-बेसी) वर्षा का अनुमान लगाया था। स्काइमेट के संशोधित पूर्वानुमान के अनुसार 63% संभावना सामान्य बारिश की है। सामान्य से कम बारिश के आसार 35% हैं जबकि सूखे की संभावना 2% यानी ना के बराबर है। हमारा अनुमान है कि अगस्त और सितंबर में दीर्घावधि औसत की क्रमशः 92% और 112% (+/-9%) बारिश होगी।

अगस्त की समग्र बारिश की अधिकांश मात्रा पहले पखवाड़े में दर्ज की जा सकती है। हमारा अनुमान है कि 15 से 20 अगस्त के बीच बारिश नहीं होगी। 20 से 24 अगस्त के बीच वर्षा का एक और दौर आने की संभावना है और उसके बाद अगस्त के अंत में फिर से हल्की बारिश का एक दौर आ सकता है। दक्षिण भारत में बारिश में कमी बनी रहेगी। उत्तरी आंतरिक कर्नाटक, मराठवाड़ा और रायलसीमा बारिश के मामले में सबसे अधिक उपेक्षित रहेंगे। पश्चिमी तटों पर मुंबई से लेकर केरल तक बारिश में किसी विशेष सुधार की गुंजाइश नहीं है।

मैडेन जूलियन ओशीलेशन (MJO) ने जून में अच्छी बारिश होने में मदद की। लेकिन 28 जून के बाद से यह नकारात्मक अवस्था में चला गया था। पश्चिमी प्रशांत महासागर में एक के बाद एक कई टाइफ़ून आए जो हिन्द महासागर से उठने वाली नमी को व्यापक रूप में खींचकर भारत से दूर ले गए। MJO इस समय अनिश्चित स्थिति में है। हम दो निष्कर्ष निकाल सकते हैं, पहला: MJO अगस्त में बारिश पर नकारात्मक असर नहीं डालेगा और दूसरा: सितंबर में यह अनुकूल रहेगा।

अल नीनों इस समय सशक्त है और इसे हमने अपने पूर्वानुमान के आंकलन में शामिल किया था। अल नीनों के साप्ताहिक सूचकांक के अनुसार इसमें कुछ कमी आई है। नीनों 3 का तापमान 2.3°C से घटकर 2.1°C हो गया है। नीनों 1.2 का तापमान 2.9°C से कम होकर 2.3°C हो गया है। नीनों 3.4°C, 1.7°C से गिरकर 1.6°C हो गया है। नीनों प्रभाव से आमतौर पर उत्तर/उत्तर पश्चिम भारत में सामान्य से कम वर्षा होती है जबकि दक्षिणी प्रायद्वीपीय भारत में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की जाती है। वर्ष 2015 इस मामले में अपवाद है, जिसमें परिस्थितियाँ बिलकुल बदल गई हैं। इंडियन ओशन डायपोल (IOD) इस समय तटस्थ है और यह अगस्त में सकारात्मक होने की राह पर है। मॉनसून के लिए यह अनुकूल होगा।

देश में कृषि की स्थिति

जुलाई के तीसरे सप्ताह के अंत तक कुल खरीफ बुआई में पिछले वर्ष के मुक़ाबले 143.4 लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ। वर्ष 2014 में इसी समय तक जहां 550.42 लाख हेक्टेयर खेती हुई थी वहीं इस वर्ष यह आंकड़ा 693.8 लाख हेक्टेयर पहुँच गया। राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश में मॉनसून अच्छा रहा है जिससे खरीफ दलहनी और तिलहनी फसलों (मूंग, उड़द, सोयाबीन, मूँगफली और तिल) तथा मोटे अनाजों की बुआई में इजाफा हुआ। महाराष्ट्र और उत्तरी कर्नाटक में कम बारिश के कारण बुआई पिछड़ रही है। हालांकि अगस्त के पहले पखवाड़े में बारिश की संभावना है जिससे इन राज्यों में जारी बुआई रफ्तार पकड़ सकती है और बुआई का दायरा बढ़ सकता है।

अधिकांश खरीफ फसलें इस समय वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में है और जल्द ही फसलों में फूल निकलना शुरू हो जाएगा। इस बारिश से फसलों का विकास सुनिश्चित हो सकता है। सितंबर के पहले पखवाड़े में संभावित बारिश फसलों के लिए बोनस की तरह होगी।

वर्ष 2015 में धान की खेती 12% बढ़ोत्तरी के साथ वर्ष 2014 के 176.53 लाख हेक्टेयर के मुक़ाबले 188.52 लाख हेक्टेयर पहुँच गई है। जुलाई में हुई अच्छी बारिश और अगस्त के पहले पखवाड़े में संभावित बारिश धान की फसल के लिए लाभदायक रहेगी। कपास की खेती भी पिछले वर्ष की तुलना में 23.3% बढ़ी है। 2014 में 76.13 लाख हेक्टेयर में कपास बोई गई थी जबकि 2015 में 99.52 लाख हेक्टेयर में इसे बोया गया है। जुलाई के दूसरे पखवाड़े में हुई बारिश से कपास की फसल को फायदा पहुंचा है।

दलहनी फसलों की खेती भी 24.4% बढ़ी है। 2014 में 48.22 लाख हेक्टेयर में दालों की खेती हुई थी जबकि इस वर्ष 72.64 लाख हेक्टेयर में दलहनी फसलें बोई गई हैं। तिलहनी फसलों की बुआई में भी ज़बरदस्त 35% का इजाफा हुआ है। वर्ष 2014 में 107.84 लाख हेक्टेयर में तिलहनी फसलें बोई गई थीं जबकि 2015 में 143.02 लाख हेक्टेयर में तेल वाली फसलों की खेती की गई है। तिलहनी फसलों में सबसे अधिक उछाल सोयाबीन की खेती में आया है, 2014 में इसकी बुआई 77.77 लाख हेक्टेयर में हुई थी जबकि इस वर्ष सोयाबीन की खेती 104.81 लाख हेक्टेयर में की गई है।

अधिक खेती के मामले में सबसे अधिक बुआई मोटे अनाजों की हुई है। इसमें 48.5% का उछाल आया है। वर्ष 2014 के 87.18 लाख हेक्टेयर के मुक़ाबले 2015 में मोटे अनाजों की खेती 135.77 लाख हेक्टेयर में की गई है। मक्का, ज्वार और बाजरा की भी खेती बढ़ी है।

Image Credit : The Hindu

 

 

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