अल नीनो के चलते इस वर्ष की शुरुआत से ही बड़े पैमाने पर लोगों में भय पैदा हो गया था। कम मॉनसून वर्षा को लेकर इस “छोटे से बच्चे” ने बड़ा डर पैदा किया है। मार्च में जब से हमने सामान्य मॉनसून का अनुमान व्यक्त किया है तब से, मैं व्यक्तिगत तौर पर स्पष्टीकरण देता हुआ पाता हूँ कि हम ऐसा क्यों सोच रहे हैं। मैं क्यों सोचता हूँ कि यह मॉनसून सामान्य होगा। इस लेख में मैं इसी से जुड़े विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ।
सबसे पहले इस समस्या को आंकड़ों के आधार पर देखते हैं। “एल नीनो” भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर को असामान्य रूप से गर्म कर देता है, जिससे दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में बाढ़ और सूखे जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। हाँ, ये सच है कि भारतीय उपमहाद्वीप में एल नीनो के कारण मॉनसून कमजोर रहता है, (अल नीनो विकसित होने वाले वर्षों के दौरान 60% मामलों में सूखा देखा गया है)। वर्ष 2000 से सभी सूखे वर्षों (2002, 2004, 2009 और 2014) में अल नीनो विकसित हुआ है। लेकिन कुछ अपवाद भी रहे हैं।
हमारे देश ने 1953 से 1963 के बीच 4 अल नीनो वर्ष देखे, लेकिन इन सभी 4 वर्षों में सामान्य या सामान्य से अधिक वर्षा दर्ज की गई। दूसरी बात यह कि अगर अल नीनो का अध्याय पिछले वर्ष से जारी है तो मॉनसून अल नीनो के दूसरे वर्ष में खराब नहीं होता है, बल्कि अल नीनो शुरू होने वाले साल में ही प्रायः मॉनसून कमजोर रहता है। वर्ष 2014 में अल नीनो शुरू हुआ और ये सूखा रहा (दीर्घावधि औसत की 88% वर्षा दर्ज की गई)। वर्ष 2015 का अल नीनो पिछले वर्ष से जारी है। इसलिए मॉनसून के खराब होने का डर कम है।
एक के बाद एक सूखा कम ही होता है
जलवायु के नज़रिये से देखें तो एक के बाद एक सूखा पड़ने के आसार कम ही होते हैं। पिछले 140 वर्षों में ऐसा केवल 4 बार 1904-05, 1965-66, 1985-86, 1986-87 में ही हुआ है। पिछले वर्ष सूखा पड़ा था क्योंकि अल नीनो शुरू हुआ था और इस वर्ष अधिक संभावना सामान्य मॉनसून वर्षा की है।
स्काइमेट का डायनेमिक मॉडल
स्काइमेट पिछले एक दशक से डायनेमिक मॉडल पर काम कर रहा है, और वर्ष 2012 से इसका परीक्षण जारी है। वर्ष 2012 से स्काइमेट का मॉनसून का अनुमान सही साबित हुआ है। पिछले वर्षों में स्काइमेट ने काफी पहले ही एक बार कम वर्षा का और एक बार सूखे का अनुमान लगा लिया था। हमने अपने मॉडल का पीछे के 30 वर्षों का भी परीक्षण किया है जिसमें यह 74% सफल हुआ है। यह वही मॉडल हैं जो जनवरी से लगातार सामान्य मॉनसून दिखा रहे हैं। जबकि एक यह सक्षम अल नीनो को भी ध्यान में रख रहा है।
कमजोर होता हुआ अल नीनों बनाम मजबूत होता अल नीनों
मुझे यहाँ अपनी एक चूक स्वीकार करने की ज़रूरत है। हम [स्काइमेट] मार्च से यह कहते आ रहे हैं कि यह अल नीनों पिछले साल से चला आ रहा है, जो कुछ समय बाद कमजोर हो जाएगा। हमारी पहली बात सही रही जबकि दूसरा तर्क गलत हो गया है। यह अल नीनो पूर्वी प्रशांत महासागर में वास्तव में ज़्यादा सशक्त हो गया है। मैं कहना चाहूँगा कि तथ्यों से हम पूरी तरह अवगत हैं और हमारे मॉडल मजबूत होते अल नीनों के साथ साथ सभी जिम्मेदार पहलुओं पर गौर कर रहे हैं।
हमें इंडियन ओशन डायपोल (IOD) फेनोमेना सकारात्मक दिख रहा है। IOD एक ऐसा फेनोमेना है जिसमें भूमध्य रेखा के पास हिन्द महासागर गर्म हो जाता है। अरब सागर के निकट पश्चिमी ध्रुव और बंगाल की खाड़ी के पास पूर्वी ध्रुव के पास तापमान में अंतर आ जाता है। अगर पूर्वी छोर की तुलना में पश्चिमी छोर पर समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है और सतह गर्म हो जाती है तब इसे IOD कहते हैं। ऐसी स्थिति भारतीय मॉनसून के लिए अनुकूल होती है और यह अल नीनो के प्रभाव को खत्म कर देती है।
मैं हिन्द महासागर में आने वाले बदलावों को ज़्यादा तवज्जो देना चाहूँगा। पूरे मॉनसून के दौरान अरब सागर के गर्म होने के संकेत हैं, जो मॉनसूनी वर्षा को बढ़ाने में सहयोग करेगा। वर्ष 1997 में तगड़ा अल नीनों था लेकिन सकारात्मक IOD ने अल नीनो के प्रभाव को कम कर दिया था और दीर्घावधि की 102% सामान्य बारिश दर्ज की गई। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सकारात्मक IOD हमें अल नीनों से बचा सकता है। वर्ष 1987 में अल नीनो बहुत प्रभावी था और उस वर्ष सूखा पड़ा था, मुझे ऐसा लगता है कि मौसम पर काम करने वाली दुनियाभर की अधिकांश एजेंसियां इस वर्ष को 1987 से जोड़ रही हैं लेकिन मुझे लगता है कि 2015 वर्ष 1997 जैसा रहने वाला है। मेरे एक पत्रकार मित्र ने कहा “दबंग स्काइमेट 102 पर अडिग”
पश्चिमी प्रशांत में टाइफूंस का प्रभाव
दुनियाभर के मौसम पूर्वानुमानकर्ता बहस को आगे बढ़ाते हुये कम वर्षा के लिए बढ़ते टाइफूंस का भी तर्क दे रहे हैं। पश्चिमी प्रशांत में टाइफूंस की बढ़ती घटनाओं के लिए भी अल नीनों के प्रभाव को माना जा सकता है। पश्चिमी प्रशांत पूरे वर्ष सक्रिय रहा जहां 20 तूफान/टाइफूंस देखे गए। हम इस बात से भी इंकार नहीं कर रहे कि टाइफूंस का भारतीय मॉनसून पर असर नहीं होगा, लेकिन इसके कारण भारत में सूखा भी नहीं आएगा।