[Hindi] बजट 2019: कृषि के लिए अलग बजट की मांग कर रहे किसान

January 31, 2019 8:13 PM|

Marathwada farmer_somthingsbrewing 600कृषि और किसान अक्सर राजनीति का शिकार होते हैं। पार्टियां वायदे बहुत करती हैं लेकिन धरातल पर अपेक्षित नियम कायदों की कमी और सरकारी नकारेपन के कारण देश का पेट पालने वाला भूखे पेट रह जाता है। हालांकि राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक गाहे-बगाहे चिंता जाहिर करती रहती हैं जिससे अब किसान संतुष्ट नहीं है। इसी के चलते किसानों ने कृषि के लिए अब ठोस क़दम उठाने की मांग शुरू कर दी है। महाराष्ट्र में नासिक के किसानों का कहना कि कृषि के लिए ठीक उसी तरह से अलग से बजट होना चाहिए जैसे पहले रेलवे बजट होता था।

यह मांग उठी है महाराष्ट्र के नासिक के किसानों की तरफ से और धीरे-धीरे देश के बाकी हिस्सों में भी किसान इसके पक्ष में खड़े नज़र आ सकते हैं। किसानों ने कहा है कि केंद्र सरकार अलग से मूल्य स्थिरता निधि यानी प्राइस स्टेबिलिटी फंड की स्थापना करे, जिसका कृषि के कल्याण के लिए इस्तेमाल हो सके। देश का अंतरिम बजट 1 फरवरी को प्रस्तुत किया जाना है उससे पहले देश भर से कृषि से जुड़े लोगों और किसानों की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं।

महाराष्ट्र के नासिक के प्याज की खेती करने वाले किसान कुबेर जाधव का कहना है कि हम खेती और किसानों की बेहतरी के लिए अलग से केंद्रीय बजट की मांग करते हैं, जिससे खेती में आने वाली लागत का डेढ़ गुना मूल्य किसानों को मिल सके। उन्होंने कहा कि अगर केंद्र सरकार आलू और प्याज के लिए मूल्य स्थिरता निधि की स्थापना करती है तो उपभोक्ताओं को यह सस्ती दर पर उपलब्ध हो सकता है। साथ ही हम यह भी मांग करते हैं कि किसानों के हित के लिए भी इसी तरह के निधि की स्थापना की जानी चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि इस समय देश में ऐसा कोई तंत्र नहीं है जो दैनिक या साप्ताहिक आधार पर फसलों की बुआई का आंकड़ा उपलब्ध करा सके। गौरतलब है कि जब भी उत्पादन अच्छा होता है कृषि उत्पादों की कीमतों में भारी गिरावट देखने को मिलती है। इसका परिणाम किसानों को भुगतना होता है। किसानों का यह कहना है कि सरकार को ऐसे तंत्र की स्थापना करनी चाहिए जो बुआई से जुड़े सटीक आंकड़े उपलब्ध करा सके।

इसके अलावा किसानों की शिकायत बाजार में उपलब्ध कीटनाशक और रोग नाशक दवाइयों की बढ़ती कीमतों को लेकर भी है। किसानों का कहना है कि बीते चार-पांच वर्षों में कीटनाशक और रोग नाशक दवाओं की कीमतों में 50% की बढ़ोतरी हुई है और इसमें हर साल 5 से 10% कीमत बढ़ जाती है। इसलिए सरकार को कुछ नियम तय करने चाहिए ताकि किसानों को दवाइयां सस्ती दरों पर मिल सकें। उर्वरकों सहित अन्य लागत कीमतों में कमी करनी चाहिए जिससे उत्पादन के खर्चे में कमी आए।

Image credit: somthingsbrewing 

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