कश्मीर के खिलान मार्ग क्षेत्र में कोंगदूरी ढलान पर अफरवाट की चोटी पर 22 फरवरी को एक विशाल हिमस्खलन हुआ। बता दें, अफरवाट की ऊंचाई 14,000 फीट से अधिक है और यह लगभग पूरे साल बर्फ से ढकी रहती है। हिमस्खलन में एक रूसी स्कीयर की जान चली गई, जबकि अन्य पांच को बचा लिया गया। कोंगदूरी ढलान पर अफरवाट की चोटी क्षेत्र कश्मीर में एक लोकप्रिय हिमालयी स्की रिसॉर्ट है। गौरतलब है, पिछले 3-4 दिनों तक भारी बर्फबारी के बाद अफरवाट की चोटी को खतरे के क्षेत्र में रखा गया था। वहीं, आपदा प्रबंधन टीम ने पहले ही हिमस्खलन की चेतावनी जारी की थी।
बर्फबारी के बाद हिमस्खलन: एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभों के कारण कश्मीर, जम्मू और लद्दाख क्षेत्र के मध्य और ऊंचाई वाले इलाकों में बहुत भारी बर्फबारी हुई है।18 फरवरी से शुरू होकर 20 फरवरी तक पूरे क्षेत्र में भारी से बहुत भारी बर्फबारी हुई। मौसम प्रणाली के अवशेष के कराण 21 फरवरी को कम पैमाने पर मौसमी गतिविधि जारी रही। जिसके बाद क्षेत्र के ऊंचे इलाकों और पर्वत चोटियों पर हिमस्खलन होने की चेतावनी जारी की गई। कोंगदूरी ढलानों को किसी भी साहसिक गतिविधि के लिए सीमा से बाहर रखा गया था।
पहले भी हुआ हिमस्खलन: गौरतलब है, लगातार बर्फबारी के बाद ऊंची चोटियों और ढलानों पर हिमस्खलन होना बहुत आम हो जाता है। जम्मू और कश्मीर में फरवरी 2024 के महीने में भारी बर्फबारी का यह दूसरा दौर था। इससे पहले महीने की शुरुआत में 01 से 03 फरवरी के बीच कश्मीर घाटी भारी बर्फबारी से ढकी हुई थी। इसके बाद 08 फरवरी को कश्मीर के गांदरबल इलाके में भारी हिमस्खलन हुआ था। सौभाग्य से इसमें जान-माल को कोई नुकसान नहीं हुआ था। कई बार प्रभावित क्षेत्र अवरोधित क्षेत्र में आ सकता है, इसलिए कोई नुकसान नहीं होता है। हालाँकि, कोंगडोरी ढलानों के हिमस्खलन ने खतरे के क्षेत्र में पर्वतारोहण गतिविधियों का प्रयास कर रहे विदेशी स्कीयर्स को फंसा दिया।
हिमस्खलन क्या होता है: हिमस्खलन का अर्थ तीव्र और लगातार बर्फबारी गतिविधि के बाद ढलानों पर जमा बर्फ के ढेर का लुढ़कना होता है। यह भूकंप की तरह 'कोई सूचना नहीं' वाली आपदा है। हिमस्खलन अघोषित रूप से होता है और लुढ़कता हुआ मलबा बिजली की गति से नीचे आता है। नीचे की तरफ आती हुई जमी बर्फ कीचड़, चट्टाने जो भी रास्ते में आती है सभी को अपने साथ खींच लेती है। आपदा नीचे की तरफ आता हुए ढ़ेर की गति इतनी तेज होती है कि अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज को ध्वस्त कर देती है। जैसे, कई संरचनाओं, पेड़, सामग्री(सामान) और मनुष्यों इनमें से जो भी बर्फ के ढेर के रास्ते आता है, तेज गति इन सब को नष्ट कर देती है।
मौसमी गतिविधि कम होने पर बढ़ा खतरा: कश्मीर घाटी की सभी ढलानों पर बहुत भारी बर्फबारी हुई है। जगह-जगह 5-10 फीट से अधिक बर्फ जमी हुई है। अभी कुछ समय के लिए अस्थायी तौर पर मौसमी गतिविधियां बंद हो गई हैं। लेकिन, खराब मौसम की स्थिति में कमी से इन क्षेत्रों में एक और खतरा जुड़ गया है। बता दें, तापमान में मामूली बढ़ोत्तरी बर्फ के ढेर के आधार(जड़/ तल) को ढीला करने में सक्षम होती है। जिससे बर्फीले टीलों के अपने ही वजन के नीचे टूटकर ढलानों से नीचे गिरने की संभावना रहती है। कश्मीर में अभी खतरा टला नहीं है। मौसमी गतिविधि बर्फबारी और बारिश बंद होने के बाद एक सप्ताह की अवधि हिमस्खलन के लिए बहुत महत्वपूर्ण और संवेदनशील रहती है। अभी, पहाड़ी क्षेत्रों में जिंदगी और संपत्ति की सुरक्षा के लिए ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।