पिछले तीन दिनों से उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में कोहरा नहीं हैं। राजधानी दिल्ली जहां कोहरा होने की उम्मीद थी, यहां सुबह चमकदार और दिनभर अच्छी धूप खिल रही है। आज पालम हवाई अड्डे पर दृश्यता (विजिबिलिटी) 1500 मीटर से कम नहीं हुई है, ऐसा कभी-कभी ही होता है। दिन के शुरुआती घंटों में विजिबिलिटी में सुधार आ गया और 2000 मीटर से भी ज्यादा हो गई। पंजाब में कोहरे के केंद्र अमृतसर, जालंधर और पठानकोट में धुंधले दिन की बजाय चमकदार सुबह देखी गई। जम्मू, जयपुर और अंबाला में भी दिन की शुरुआत में ऐसी ही समान स्थिति थी। अच्छी धूप के साथ कई जगहों पर पारा 20°C के स्तर को पार कर गया।
बारिश के बाद दिखाई देता है कोहरा: उत्तरी मैदानी इलाकों और राष्ट्रीय राजधानी में लगातार दो दिनों 04 और 05 फरवरी को शीतकालीन वर्षा हुई थी। इससे पहले फरवरी महीने की शुरुआत में भी अच्छी बारिश देखने को मिली थी। बता दे, सर्दियों के महीनों में बारिश होने के बाद सुबह के समय घना कोहरा देखा जाता है। खराब विजिबिलिटी दोपहर तक या उसके बाद भी बनी रहती थी। हवाई, रेल और सड़क यातायात के लिए मौसम की खराब स्थिति पहले कई दिनों तक देखी गई। लेकिन, कई दिनों से क्षेत्र के बड़े भाग से कोहरा गायब है।
पूर्वानुमान लगाना है चुनौती: इसीलिए अभी मौसम विज्ञानियों के लिए कोहरे का सटीक पूर्वानुमान लगाकर भविष्यवाणी करना एक चुनौती है। इसमें हमेशा सफलता और विफलता बनी रहती है। कोहरे बनने के लिए स्थिर वायुमंडलीय परिस्थितियों की जरूरत होती है। कोहरा बनने के लिए तीन तत्व बहुत जरूरी हैं, हल्की हवाएं, उच्च आर्द्रता (humidity) और मध्यम ठंडा तापमान मिलकर कोहरा बनाते हैं, जो अक्सर देर रात और सुबह के समय देखा जाता है। अगर इन तीनों जरुरी तत्वों में से कोई एक भी एक्टिव नहीं है तो कोहरा नहीं बनेगा।
कोहरा कैसे बनता है: उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में कोहरा बनने के लिए पृथ्वी की सतह पर हवा को लगभग संतृप्त (सैचुरेटेड) होने की आवश्यकता होती है। इसका मतलब है कि सपोर्ट करने वाली आर्द्रता (humidity) 90% से अधिक होनी चाहिए या फिर उससे भी अधिक होनी चाहिए। कोहरे बनने के लिए कुछ मिश्रण क्रिया की भी आवश्यकता होती है। इसीलिए इस घटना के लिए हल्की हवाएँ बहुत आवश्यक हैं। पूरी तरह से धीमी या तेज हवाएं घना कोहरा नहीं बनाती हैं। पृथ्वी की सतह के पास वायु पार्सल को पूरी तरह से ठंडा करने की जरूरत होती है। जिससे पारा 5-10 डिग्री सेल्सियस होने के बाद संघनन शुरू हो जाए। रात के समय साफ आसमान स्थलीय विकिरण (terrestrial radiation) से बचने और निचली परतों व सतह के पास जरूरी ठंडक प्राप्त करने में मदद करता है।
मैदानी क्षेत्रों में चल रही नोक्टर्नल जेट: पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली के कुछ हिस्सों को कवर करने वाले उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में सुबह से लेकर दिन भर तेज़ सतही हवाएँ चल रही हैं। ये तेज़ हवाएँ 'नोक्टर्नल जेट' का हिस्सा हैं। रात्रिचर जेट (नोक्टर्नल जेट) रात के समय जब आसमान साफ होता है, निचले वायुमंडल में तेजी से चलने वाली वायु धारा है। नोक्टर्नल जेट सुबह के समय अधिक शक्तिशाली होती हैं और सतह की जगह वायुमंडल की निचली परतों में बहुत तेजी से बहती हैं। ऐसी तेज गति वाली हवाएँ मजबूत दबाव में उतार-चढ़ाव का परिणाम है, जो पश्चिमी विक्षोभ के गुजरने के बाद उत्तरी मैदानी इलाकों में बनती है। जिससे पहाड़ों पर भारी बर्फबारी होती है। तेज गति की हवाएँ वायुमंडल के घर्षण स्तरों में मंथन और हवा के अशांत मिश्रण का कारण बनती हैं। नोक्टर्नल जेट की व्यापकता कोहरे नहीं बनने देती है।
बदलेगी हवा और विजिबिलिटी होगी खराब: नोक्टर्नल जेट के कारण आज और कल तेज हवाएं चलने की संभावना है। मौसम की स्थितियों में बदलाव से हवा का प्रवाह बदल जाएगा, जो 10 फरवरी या उसके कुछ समय बाद शुरू होगा। मध्य भागों पर एक मजबूत चक्रवाती परिसंचरण आने की संभावना है। महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों से शुरू होने वाला सर्कुलेशन दक्षिण राजस्थान और गुजरात के कुछ हिस्सों तक जाएगा। बाद में यह मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों की तरफ ज्यादा चला जाएगा। यह प्रणाली मध्य भागों में भी कुछ मौसमी गतिविधियों को ट्रिगर करेगी। वैसे मौसम की गतिविधि दिल्ली और उत्तरी मैदानी इलाकों तक नहीं पहुंचेगी, लेकिन इन भागों में हवा का प्रवाह बदने की संभावना है। जिसके कारण 10 फरवरी के बाद दृश्यता(विजिबिलिटी) कभी भी खराब हो जाएगी और अगले 4-5 दिनों तक बनी रहेगी।
फोटो क्रेडिट: जागरण