राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में बीते कई दिनों से बारिश हो रही है। बीते दिन हुई भारी बारिश के बाद इन गतिविधियों में मामूली कमी आई है।
पिछले 24 घंटों के दौरान दिल्ली की सफदरजंग वेधशाला में 38 मिमी और पालम में 68 मिमी बारिश दर्ज की गई है। कल सफदरजंग में 70 मिमी और पालम में 99 मिमी बारिश दर्ज की गई थी।
1 जून से 19 जुलाई के बीच दिल्ली में औसत से सिर्फ 3% बारिश की कमी है, जो कुछ दिन पहले लगभग 56 फीसदी थी। दिल्ली में 19 जुलाई तक सामान्य औसत 185.3 मिमी के मुकाबले 180.4 मिमी बारिश दर्ज की जा चुकी है। वही दिल्ली में बीती रात हुई भारी बारिश आंकड़ों को सामान्य से अधिक पंहुचा दिया है। दिल्ली में जुलाई के महीने अभी तक औसत वर्षा 187.3 मिमी दर्ज हुई है। आज भी हल्की से मध्यम बारिश की संभावना है। वहीं कल और परसों भी बारिश की हल्की फुहारें देखने को मिल सकती है। इसके अलावा 25 या 26 जुलाई तक दिल्ली में फिर से बारिश होने के आसार है। बारिश के बदले हुए स्वरुप को देखकर हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि बारिश के दिन भले ही कम हो रहे हैं, लेकिन तीव्र बारिश की गतिविधियाँ बढ़ रही हैं।
जुलाई के महीने में अभी 6-7 दिनों तक बारिश देखने को मिल सकती है। लेकिन दिल्ली में वर्षा ने अपना मासिक हिस्सा लगभग पूरा कर लिया है। जिसमे बीस से अधिक दिन शुष्क, गर्म और आर्द्र रहते हैं। हालाँकि यह मामला सिर्फ दिल्ली का नहीं बल्कि देश के ज्यादातर हिस्सों में इसी तरह की बारिश देखने को मिल रही है।
90 के दशक और 21वीं सदी के शुरुआती वर्षों में, मानसून की बारिश पूरे महीने एक समान और अच्छी तरह से वितरित हुआ करती थी। जबकि पिछले दशक के दौरान वर्षा के स्वाभाव में जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिक अव्यवस्था का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। तीव्र बारिश की इन गतिविधियों से पानी बर्बाद हो जाता है। ऐसे में किसानों या जनता को कोई फायदा नहीं होता है और भूजल का पुनर्भरण नहीं हो पाता है। मौसम की ऐसी घटनाएं कभी बाढ़ और कभी-कभी सूखे की ओर ले जाती हैं।
आंकड़ों के आधार पर हम कह सकते हैं कि मानसून, दिल्ली या देश के किसी अन्य हिस्से यहां तक कि देश के लिए भी सामान्य है। लेकिन वर्षा का यह असमान वितरण चिंता का कारण है।