उत्तर भारत की पहाड़ियाँ इस मौसम में काफी हद तक बंजर बनी हुई हैं। सामान्य सफेद आवरण का स्थान धूसर रेगिस्तानी रूप ने ले लिया है। पहाड़ों से बर्फ के ढेर गायब हो गए हैं, जिससे एडवेंचर, टूरिज्म, स्पोर्ट्स, एग्रीकल्चर, जल निकाय( नदियां, तालाब, झरना, पोखर, झील) और ग्लेशियर जैसे सभी क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं। बर्फबारी में जितनी देरी होती जा रही है, समस्या भी उतनी गंभीर होती जा रही है। बर्फबारी नहीं होने से ऐसा नुकसान हो रहा जिसको पूरा नहीं किया जा सकता है। यह क्षति जीवन और संपत्ति को प्रभावित कर रही है।
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पर्यटक रिसॉर्ट्स के लिए जनवरी और फरवरी बर्फीले महीने हैं। जनवरी माह में अब तक किसी भी लोकप्रिय स्थल पर बर्फबारी नहीं हुई है। बर्फबारी ने इस सीज़न में क्रिसमस, नए साल, लोहड़ी और मकर सक्रांति को पीछे छोड़ दिया है, इसमें लगातार देरी हो रही है। बर्फबारी होने की अगली उम्मीद गणतंत्र दिवस है। जो धीरे-धीरे ही सही, लेकिन एक सूत्र में बंधता दिख रहा है।
अगले एक सप्ताह तक किसी भी सक्रिय पश्चिमी विक्षोभ या उसके सहायक के उत्तरी पहाड़ों पर प्रभावी ढंग से पहुंचने की संभावना नहीं है। गणतंत्र दिवस के आसपास एक मध्यम रूप से मजबूत प्रणाली की शुरुआती उम्मीद दिखाई दे रही है। मॉडलों को वादा निभाना होगा, अन्यथा कई अवसरों पर दस दिन पहले सटीक पूर्वानुमान के प्रति संवेदनशील रहते हैं। निकटतम विश्वसनीय विंडो बमुश्किल 5 दिनों की लीड टाइम से संबंधित है। इसलिए, सकारात्मक परिणाम की पुष्टि के लिए अगले 2-3 दिनों तक उभरती स्थिति की निगरानी की आवश्यकता है।
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