गुजरात में भीषण बारिश और बाढ़ की विभीषिका में लगभग 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है। किसानों की खरीफ सीज़न की मेहनत पर पानी फिर गया है। पहले से ही संघर्ष कर रहे किसानों पर प्रकृतिक आपदा का यह दर्द बड़ा है।
स्काइमेट वेदर के फील्ड पर मौजूद कृषि विशेषज्ञों से मिले आंकड़ों के अनुसार गुजरात के बाढ़ प्रभावित इलाकों में लगभग 50 से 70 प्रतिशत तक फसलें चौपट हो गई हैं।
बनासकांठा ज़िले की कंकरेज और धनेरा तहसील में सबसे अधिक नुकसान की खबर है। पाटन ज़िले की राधनपुर, सुरेन्द्रनगर की वाधवां, सायला और चोटिला जबकि मोरबी ज़िले की तनकारा तहसील में किसानों की पूरी मेहनत पानी में बह गई है।
बनासकांठा में मूँगफली की फसल 30 से 40 प्रतिशत क्षतिग्रस्त हुई है। कपास, मूंग, उड़द, ग्वार और बाजरे की 60 से 70 प्रतिशत खेती बाढ़ के पानी में नष्ट हो गई है। पाटन ज़िले में मूंग और उड़द की 70 से 80 फीसदी फसल जल प्रलय में स्वाहा हो गई है। कपास को भी 50 से 60 प्रतिशत नुकसान हुआ है। किसानों से मिली प्रतिक्रिया और जमीनी स्थिति के आंकलन के अनुसार सुरेन्द्रनगर में कपास की 50 से 60 फीसदी फसल पूरी तरह से खत्म हो गई है। मोरबी में 60 से 70 फीसदी कपास की फसल बाढ़ की भेंट चढ़ गई है।
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खेतों में पानी अभी भी भरा हुआ है। खेतों की मिट्टी में कटान हो रहा है, गुणवत्ता नष्ट हो गई है, नमी अधिक है। इसके चलते बची फसलों में अब कीट और रोग संक्रमण की चुनौती पैदा हो गई है। किसान परेशान हैं कि करें तो क्या करें?
नुकसान की भरपाई आसान नहीं है लेकिन हमारा मानना है कि जिन खेतों में फसल पूरी तरह से नष्ट हो गई है उनमें कम अवधि की फसलों को बोया जा सकता है। ज्वार, बाजरा जैसी चारा वाली फसलों के अलावा कम अवधि वाली दलहन फसलें भी बोई जा सकती हैं। लौकी और तोरी जैसी बेल वाली सब्जियाँ भी एक विकल्प हैं।
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खेतों में खड़ी फसल के अलावा APMC में रखें अनाजों के भी बड़े पैमाने पर नष्ट होने आशंका है। जीरा, ईसबगोल, सौंफ, सरसों और ग्वार सीड मौसम के लिहाज से बेहद संवेदनशील कमोडिटी हैं और भंडारणों में पानी भरने से इनका काफी नुकसान हुआ है। फिलहाल गुजरात में बारिश और बाढ़ से कुल नुकसान का अंदाज़ा अभी लगाया जाना है। इस बीच सरकारी एजेंसियों का मानना है कि नुकसान करोड़ों का है।
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