पिछले सप्ताह के आखिरी कुछ दिनों के दौरान उत्तर भारत के भागों में बारिश हुई थी। पश्चिमी राजस्थान और गुजरात में कुछ जगहों पर ओलावृष्टि भी देखने को मिली थी। दक्षिण भारत में उत्तर पूर्वी मॉनसून पिछले कई दिनों से कमजोर बना हुआ था लेकिन इस सप्ताह के शुरुआती दिनों में यह सक्रिय हो रहा है।
स्काइमेट ने जैसा अनुमान लगाया था नवंबर में बारिश सामान्य से कम हुई है। जबकि इससे पहले यानी अक्टूबर में जो कि उत्तर पूर्वी मॉनसून का शुरुआती समय होता है, उसमें दक्षिण भारत में सामान्य से काफी अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई। अब फिलहाल कोई चक्रवाती तूफान नहीं दिखाई दे रहे हैं और अन्य कोई सिस्टम भी विकसित नहीं हो रहे हैं। इसके बावजूद इस सप्ताह से उत्तर पूर्वी मॉनसून के सशक्त होने की संभावना नजर आ रही है।
उत्तर भारत में पहाड़ों पर फिर होगी बर्फबारी
उत्तर भारत में इस सप्ताह के शुरुआती दिनों में खासकर जब तक कोई पश्चिमी विक्षोभ नहीं आता, मौसम शुष्क रहेगा और अगला पश्चिमी विक्षोभ 20 नवम्बर के आसपास आता हुआ दिखाई दे रहा है। पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से उत्तर भारत के पहाड़ों पर मौसम बदलेगा। जम्मू कश्मीर में इसका सबसे ज्यादा असर दिखेगा। राजस्थान और गुजरात सहित उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में इस पूरे सप्ताह में मौसम शुष्क रहने की संभावना है हालांकि सप्ताह के शुरुआती दिनों में इन क्षेत्रों में तापमान नीचे आएगा।
इस सप्ताह उत्तर पूर्वी मॉनसून के प्रभावी होने की संभावना
इस सप्ताह दक्षिण भारत के लगभग सभी भागों में उत्तर पूर्वी मॉनसून सक्रिय रहेगा। इसका सबसे अधिक असर तमिलनाडु में देखने को मिलेगा, जहां कुछ स्थानों पर भारी वर्षा भी हो सकती है। स्काइमेट के पास उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 1 अक्टूबर से 18 नवंबर के बीच तमिलनाडु के चेन्नई शहर में सामान्य से 41% कम बारिश हुई है। अब अच्छी बारिश की संभावना के चलते हमें उम्मीद है कि बारिश के आंकड़ों में सुधार होगा।
मध्य और पूर्वी भारत के भागों में इस सप्ताह मौसम शुष्क रहेगा लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा तापमान में गिरावट होती रहेगी। पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में बारिश की गतिविधियां अरुणाचल प्रदेश और असम पर सीमित रहेंगी।
आने वाले दिनों में भी साफ हवा में सांस लेगी दिल्ली
दिल्ली में इस बार भी हर साल की तरह प्रदूषण अक्टूबर के आखिरी दिनों से बढ़ना शुरू हुआ था और नवंबर में 3 तारीख को यह अपने चरम पर पहुंचा था, जो इस सीज़न का अब तक का सबसे अधिक प्रदूषण था। 3 नवंबर को अधिकांश स्थानों पर वायु गुणवत्ता सूचकांक 1000 के उच्चतम स्तर को भी पार कर गया था। लेकिन इसके ठीक बाद उत्तर-पश्चिमी हवाओं ने दिल्ली को इस प्रदूषण के आतंक से बचा लिया। 4 नवंबर से प्रदूषण में कमी आनी शुरू हुई और 5 नवंबर तक इसमें व्यापक सुधार देखने को मिला।
लेकिन एक बार फिर 11 नवंबर से वायु प्रदूषण ने उग्र रूप लिया और दिल्ली एनसीआर के कई इलाकों में वायु गुणवत्ता सूचकांक में भारी गिरावट दर्ज की गई। दुर्भाग्य से दिल्ली के लिए यह कोई नई बात नहीं है। हर साल नवंबर में इसी तरह का नजारा दिल्ली और एनसीआर को देखने को मिलता है।
दिल्ली के प्रदूषण में इस तेज़ वृद्धि के पीछे मुख्य रूप से पश्चिमी विक्षोभ जिम्मेदार हैं, जो उत्तर भारत के पर्वतीय राज्यों पर आते हैं। जब पश्चिमी विक्षोभ पहाड़ों पर होता है उस दौरान दिल्ली आने वाली उत्तर-पश्चिमी हवाओं की रफ्तार पर ब्रेक लग जाती है, वायुमंडल में बादल बढ़ जाते हैं, जमीन की सतह पर चलने वाली हवा ऊपरी सतह पर चलने वाली हवा की तुलना में अधिक ठंडी होती है। यही ठंडी हवा कुहासा और धुंध के रूप में नजर आती है जिसमें प्रदूषण के कण ट्रैप हो जाते हैं। पड़ोसी राज्यों में जलने वाली पराली का धुआँ भी दिल्ली और एनसीआर पर आकर आग में घी का काम करता है। इन्हीं कारणों से यहां पर प्रदूषण बढ़ जाता है।
फसलों के लिए कैसा रहेगा इस सप्ताह का मौसम
फसलों के लिहाज से इस सप्ताह के मौसम को अगर देखें तो एक तरफ जहां उत्तर भारत के मैदानी इलाकों से लेकर मध्य भारत और पूर्वी भारत के अधिकांश भागों में बारिश की संभावना नहीं है, जो रबी फसलों की बुआई और खरीफ फसलों की कटाई मड़ाई तथा कपास की चुनाई के लिए बेहतर स्थिति होगी। तो दूसरी ओर दक्षिण भारत में बारिश सामान्य होगी जो निश्चित तौर पर इन क्षेत्रों में होने वाली खेती के लिए काफी लाभप्रद सिद्ध हो सकती है।
Image credit: LiveMint
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