दिल्ली-एनसीआर में अक्टूबर और नवंबर में प्रदूषण हर साल बढ़ता जा रहा है। इन्हीं दोनों महीनों में से किसी एक में दिवाली का त्योहार पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि दिल्ली प्रदूषण में दिवाली के अवसर पर होने वाली आतिशबाज़ी का भी योगदान होता है। हालांकि इस बाद पिछले कई सालों के मुक़ाबले दिल्ली में स्थिति बेहतर रही। लेकिन इस साल भी 28 अक्टूबर से हर दिन प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
इस साल 23 अक्टूबर तक दिल्ली में वायु गुणवत्ता सूचकांक मध्यम से खराब श्रेणी से ऊपर नहीं पहुंचा था। लेकिन उसके बाद हवाओं की दिशा बदलकर उत्तर-पश्चिमी से पूर्वी हुई और हवा की रफ्तार काफी कम रही जिसके चलते दिल्ली के प्रदूषण में तेज़ी से वृद्धि देखने को मिली और वायु गुणवत्ता खराब होती गई।
यह एक अच्छा संयोग था कि 27 अक्टूबर यानि दिवाली वाले दिन 15 से 20 किलोमीटर प्रतिघण्टे की रफ़्तार से हवाएँ चल रही थीं जिससे प्रदूषण को दिल्ली की हवा खराब करने का मौका नहीं मिला। साथ ही साल 2019 की दिवाली पर आतिशबाज़ी की घटनाओं में भी कमी जिससे दिल्ली की हवा पिछली दिवालियों से बेहतर रही।
पिछले साल जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 600 से भी ऊपर पहुंचा था वहीं इस बार यह 463 के आसपास रहा। हालांकि यह पिछले साल से भले ही प्रदूषण कम हो लेकिन यह स्तर भी हवा को जहरीला बना रहा है जिससे लोगों का सांस लेना मुश्किल हो रहा है। इस बार दिवाली के बाद दिल्ली-एनसीआर में कुछ स्थानों पर वायु गुणवत्ता खराब से बेहद खराब श्रेणी में है तो कुछ इलाकों में मध्यम से खराब श्रेणी में है।
पिछले वर्ष दिवाली के अगले दिन दिल्ली गैस चैंबर में तब्दील हो गई थी। 2018 में दिवाली 7 नवंबर को थी और 8 नवंबर को सुबह से प्रदूषण में वृद्धि शुरू हुई। शाम होते-होते दिल्ली-एनसीआर पर धुंध के रूप में प्रदूषण की चादर तन गई थी।
उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 8 नवंबर 2018 को दिल्ली-एनसीआर में सबसे अधिक प्रदूषण दिल्ली विश्वविद्यालय क्षेत्र में रिकॉर्ड किया गया था जहां वायु गुणवत्ता सूचकांक 900 के स्तर को पार कर गया था। इसके बाद नोएडा 820 और पीतमपुरा 745 सूचकांक के साथ क्रमशः दूसरे और तीसरे स्थान पर थे।
बाकी हिस्सों में वायु गुणवत्ता सूचकांक 800 के आसपास चला गया था। प्रदूषण पर नज़र रखने वाली सरकारी संस्था के आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का ओवरऑल एक्यूआई 600 के आसपास था जो बेहद खराब श्रेणी में आता है। प्रदूषण में पटाखे जिम्मेदार होते हैं इसमें दो राय नहीं है लेकिन मौसम की भी बड़ी भूमिका होती है।
स्काइमेट के अनुसार इस साल भी दिवाली के बाद 29 अक्टूबर से हवाओं की दिशा भी बदली है और हवाओं की रफ़्तार काफी कम है। यही वजह है कि पिछले 48 घंटों में प्रदूषण बेहद ख़तरनाक स्थिति में पहुंचा है। इस समय प्रदूषण में जो इज़ाफ़ा हुआ है उसके लिए मंद हवा, तापमान में कमी, आर्द्रता में वृद्धि को मुख्यतः जिम्मेदार माना जा सकता है।
आखिर में यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि बीते वर्षों की तुलना में इस बार प्रदूषण कम है। लेकिन कम होने का अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ अच्छा है।
Image credit: The Wire
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