इस सीजन में देरी से पहाड़ों पर मौसमी गतिविधियों की शुरूआत हुई है। अभी पहाड़ी राज्यों में भारी बर्फबारी और बारिश का दौर चल रहा है। इन मौसमी गतिविधियों से पहाड़ी राज्यों में मौसम सर्द और मैदानी इलाकों के तापमान में बदलाव हो रहा है। फरवरी महिने में मौसमी गतिविधियां बारिश, बर्फबारी, ओले अपना असर दिखा रही हैं। लेकिन, क्या आपको पता है कि बर्फबारी कितनी जरूरी है। हम आपको बर्फबारी( हिमपात) के पंचमुखी फायदे बताएंगे।
बर्फबारी से पर्यटन को रफ्तार: मौसम बदलने के कारण मैदानों में बारिश और पहाड़ों इलाकों में जमकर बर्फबारी हो रही है। लंबे समय के बाद पहाड़ों पर हो रही बर्फबारी का लुफ्त उठाने के लिए देश-विदेश से पर्यटक पहाड़ों राज्यों में उमड़ने लगे हैं। जिससे पर्यटन पर निर्भर व्यवसासियों के चेहरे खिल गए हैं। क्योंकि इस सीजन में दिसंबर और जनवरी में पहाड़ी राज्यों में बर्फबारी नहीं हुई थी, जिस कारण पहाड़ों पर टूरिस्ट नहीं पहुंचे। पर्यटकों के नहीं पहुंचने पर पर्यटन कारोबार में तेजी से गिरावट हुई थी और व्यवसायियों की जीविका मुश्किल हो रही थी। गौरतलब है, बर्फबारी नहीं होने से ऑक्यूपेंसी 30 से 40 फीसदी थी। जो फरवरी की शुरूआत में हुई बर्फबारी के बाद 50 से 60 फीसदी पहुंच गई। पर्यटकों के पहुंचने पर होटलों में तेजी से रूम की बुकिंग होती है। पहाड़ी राज्यों में पर्यटन जीविका का बहुत बड़ा जरिया है। बर्फबारी का आनंद लेने पहुंचने वाले पर्यटकों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से पर्यटन व्यवसाय को फायदा मिलता है।
होम स्टे और पर्वतारोहण को लाभ: जब पहाड़ों पर अच्छी बर्फबारी होगी तो पर्यटक पर्वतारोहण और ट्रैकिंग करने पहुंचते हैं। अगर बर्फ नहीं होने पर पर्यटक नामचीन और अनाम ऊंची चोटियों के आऱोहण के लिए नहीं पहुंचेंगे। इसी के साथ फेमस ट्रैक रूट पर ट्रैकिंग करने सैलानी नहीं पहुंचेगे। जिससे इन दोनों पर्वतारोहण और ट्रैकिंग से जुड़े कारोबारियों को फायदा नहीं होगा। वहीं, टूरिस्ट गाइड, होम स्टे कारोबार, खाने-पीने का कारोबार करने वाले सभी लोगों को नुकसान होगा। पहाड़ी क्षेत्रों में बड़े स्तर पर होम स्टे कारोबार, साहसिक गतिविधि कराने का काम होता है। बर्फबारी होने पर सैलानियों के पहुंचने पर ही इन सभी को लाभ होता है।
बर्फबारी सेब के लिए वरदान: बर्फबारी से सेब का अच्छा उत्पादन होता है। बता दें कि पूरी जनवरी में मौसम शुष्क बने रहने से सेब किसान परेशान हो गए थे। लेकिन, फरवरी की शुरूआत में देर से बर्फबारी होने के बाद किसानों चहेरों पर खुशी है। किसानों का मानना है कि अगर बर्फबारी मार्च तक जारी रहती है तो सेब की अच्छी फसल होगी, जिससे अच्छा मुनाफा होगा। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सेब के पेड़ों के लिए चिलिंग प्वाइट बनाकर रखना बहुत जरूरी होता है। अगर सेब की अच्छी पैदावार चाहिए तो चिलिंग प्वाइंट 1000 हजार से 1300 घंटो तक रहना चाहिए। इससे सेब की गुणवत्ता अच्छी होती है। अच्छी बर्फबारी सेब के पेड़ों को जरूरी नमी मिलती है। जो सेब के फूल बनने(फ्लावरिंग)के लिए बहुत आवश्यक है। वहीं, ज्यादा बर्फबारी सेब की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले फंगस को खत्म कर देती है।
विंटर गेम्स को बढावा: भारत में ओलंपिक खेलों और प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिए पीएम मोदी ने खेलो इंडिया शीतकालीन गेम्स की शुरुआत की थी। पहाड़ों पर बर्फबारी होने के बाद ही विंटर गेम्स को आयोजित किया जा सकता है। इस साल की शुरुआत में बर्फबारी नहीं होने के कारण विंटर गेम्स के आयोजन पर आंशिक बादल मंडरा गए थे। क्योंकि, शीतकालीन खेलों के लिए बर्फबारी बहुत जरूरी है। इस साल फरवरी में बर्फवारी होने के बाद शीतकालीन खेलों के पहले चरण में आइस हॉकी और स्पीड स्केटिंग का आयोजन लद्दाख में किया गया। फिर, दूसरे चरण में स्की पर्वतारोहण, अल्पाइन स्कीइंग, स्नोबोर्डिंग, नॉर्डिक स्कीइंग, गोंडोला जैसे खेलो का आयोजन गुलमर्ग और जम्मू-कश्मीर में होगा। इससे खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ेगा और स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। वहीं, उत्तराखंड के औली में भी नेशनल और इंटरनेशनल स्कीइंग प्रतियोगिता का अयोजन होता है। अच्छी बर्फबारी से शीतकालीन खेलों के संचालन में लाभ होता है।
बिजली उत्पादन में मदद: पहाड़ों पर होने वाली बर्फबारी और बारिश से नदियां, ग्लेशियर रिचार्ज हो जाते हैं। जो गर्मियों के दौरान साफ पानी और खेती के काम आता है। अगर मौसम शुष्क रहेगा तो नदियां और ग्लेशियर रिचार्ज नहीं होंगे। जिससे पीने का पानी, तापमान बढ़ना जैसे कई अन्य संकट पैदा हो जाएंगे। इसके साथ ही बर्फबारी से रिफिल हुई नदियों और ग्लेशियरों से विद्युत गृहों में बिजली के बनने पर प्रभाव होता है। गर्मियों में मार्च और अप्रैल के महीने में ग्लेशियर पिघलने लगते है, जिससे नदियों के पानी का स्तर बढ़ जाता है और विद्युत उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। लेकिन, बर्फबारी के दौरान बिजली उत्पादन में परेशानी होती है, जिसका सीधा असर उपभोक्ता पर होता है। जैसे फरवरी की शुरुआत में उत्तराखंड में हुई बारिश और बर्फबारी का असर राज्य के विद्युत गृहों पर पड़ा था। क्योंकि बर्फबारी से नदियों में पानी का फ्लों काफी कम हो गया था। जिससे बिजली उत्पादन में कमी आई और राज्य में सुचारु रुप से बिजली देने के लिए अन्य स्त्रोतो से मंहगे दामों में बिजली खरीदनी पड़ी, साथ ही राज्य में बिजली कटौती का भी सहारा लेना पड़ा।
फोटो क्रेडिट: द ट्रिब्यून