विश्व के अधिकांश भागों से सर्दी की विदाई बड़े नाटकीय ढंग से हुई। इससे ऐसा समझा जा सकता है कि मौसम में व्यापक उतार चढ़ाव में कुछ विराम लगे लेकिन वर्तमान मौसम कुछ अलग ही बयां कर रहा है। दुनिया भर के मौसम में आ रहे बदलाव के लिए जलवायु परिवर्तन को एक प्रमुख कारण माना जा रहा है।
वर्तमान समय में आस्ट्रेलिया में गर्मी या तो आखिरी दौर में होती है या पतझड़ की शुरुआत हो रही होती है। जबकि समुद्र से चारों ओर से घिरे इस देश के अधिकांश हिस्सों में अभी भी तापमान में वृद्धि का रुझान है। मेलबोर्न के पास के एक छोटे से कस्बे मिलड्यूरा में मौसम सप्ताह भर से भीषण गर्म रहा। सिडनी में एक महीने से काफी अधिक गर्मी पड़ रही है।
स्थानीय मौसम एजेंसी के अनुसार समूचे आस्ट्रेलिया में यह गर्मी एक सप्ताह तक बनी रह सकती है। तापमान में और वृद्धि की आशंका है।
जलवायु विशेषज्ञों की मानें तो आयरलैंड में प्रत्येक 8 वर्षों में सर्दियों के दौरान बारिश का मौसम भी होता है। देश के कई हिस्सों में पिछले सप्ताह शून्य से नीचे तापमान दर्ज किया गया जो कि इस समय के अनुसार एक असामान्य मौसमी स्थिति है। यद्यपि इसको सर्दियों के विदाई के पहले की स्थिति से जोड़कर देखा जा रहा है, लेकिन ऐसी स्थितियाँ जलवायु में परिवर्तन के चलते देखने को मिल रही हैं।
जलवायु में बदलाव से उत्पन्न खतरा अमेरिका में व्यापक रूप में देखने को मिल रहा है। जलवायु परिवर्तन के चलते जानलेवा टोरनैडो की संख्या बढ़ गई है। अमेरिका के पूर्वी और दक्षिनी भागों भागों में 53 टोरनैडो आए हैं जिनके चलते अनेक घर तबाह हो गए और सैकड़ों जानें चली गईं। अब अमेरिका में भीषण बाढ़ और सूखा ऐसा लगता है जैसे हर दिन के मौसम का हिस्सा बन गए हैं। मध्य अमरीका में भयावह बाढ़ की संभावना है। मैक्सिको में बर्फबारी होने की भी आशंका है। दूसरी ओर पूर्वी राज्यों में भीषण गर्मी जारी है। इन सबके के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार माना जा सकता है।
कुछ दिनों पहले अत्यधिक कार्बन उत्सर्जन के चलते फ़िजी में ट्रोपिकल चक्रवात विंस्टन आया था जिसे अब तक का दूसरा सबसे शक्तिशाली साइक्लोन माना जा रहा है। इससे पहले वर्ष 2013 में सबसे शक्तिशाली तूफान फिलीपीन्स में आया था जिसे सुपर टाइफून योलान्दा के नाम से जाना जाता है। तूफान के आंकड़ों पर नज़र डालें तो 12 सबसे भीषण तूफानों में 6 पिछले एक दशक में आए हैं।
मध्य पूर्व में जहां बारिश इक्का-दुक्का होती है, भारी बारिश दर्ज की गई है। संयुक्त अरब अमीरात और अबू धाबी में व्यापक रूप में वर्षा हुई है जिसके चलते स्कूलों को 2 दिनों के लिए बंद कर दिया गया। तबाही के रूप में बरसी इस बारिश से सड़क और हवाई यातायात पर बुरा असर पड़ा है। अनेकों गाडियाँ पानी में फंस गईं। ओमान में 3 लोगों की जानें चली गईं।
भारत में भी लोग मौसम में अचानक आ रहे बदलावों का अनुभव कर रहे हैं। इस वर्ष देश के अधिकांश हिस्सों में सर्दी ने कंजूसी दिखाई। गर्मी का भी आगाज समय से पहले हो गया। फरवरी से ही भारत के कई भागों में मौसम बेहद गर्म हो उठा। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में फरवरी के आखिरी सप्ताह से मार्च के शुरुआती कुछ दिनों के दौरान काफी गर्मी महसूस की गई थी। तापमान बढ़ते हुए 30 डिग्री के आंकड़े को पार कर गया था।
इससे पहले वर्ष 2015 को सबसे गर्म साल माना जा चुका है। जनवरी और फरवरी की गर्मी को देखकर 2016 में बेहतर स्थिति की उम्मीद करना बेमानी होगा।
भीषण तूफानों, विनाशकारी बारिश, आग की तरह प्रतीत होने वाली गर्मी इत्यादि मौसमी हलचलों को प्रकृति के प्रकोप के रूप में भले देखा जा रहा हो लेकिन जलवायु परिवर्तन भी इनके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। इसलिए इस सुंदर ग्रह पृथ्वी को बचाने के लिए हमें तत्काल प्रभाव से गंभीर कदम उठाने होंगे।
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