क्या साल 2020 सबसे गर्म होगा? यह प्रश्न मौसम विज्ञानियों में चर्चा का विषय बन गया है। पृथ्वी पर अब तक का सबसे गर्म वर्ष रहा है 2016। यानी 4 साल पहले दुनिया में जितनी गर्मी पड़ी है ऐसी गर्मी ना तो उसके पहले पड़ी और ना ही उसके बाद। 2016 में अल-नीनो अस्तित्व में था। इसलिए 2016 के गर्म होने का कुछ श्रेय उसे भी दिया जा सकता है। लेकिन यह भी चौंकाने वाले संकेत हैं कि 2020 में एल नीनो नहीं होगा इसके बावजूद इसके सबसे गर्म वर्ष होने के सिग्नल मिलने लगे हैं।
NOAA की नेशनल सेंटर फॉर एनवायरमेंटल इनफॉरमेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार मार्च का महीना पूरे ऐतिहासिक रिकॉर्ड में 1880 के बाद सबसे गर्म मार्च रहा। नोवा के अलावा नासा और जापान की मौसम विज्ञान एजेंसी के अनुसार भी पूरे इतिहास में 2020 का मार्च दूसरा सबसे गर्म मार्च का महीना रहा।
अब 2016 से 2020 की तुलना करें तो 2015 के आखिर से लेकर 2016 की शुरुआत तक सशक्त अल नीनो था। अल नीनो के चलते भूमध्य रेखा के पास प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह का तापमान गर्म होता रहता है। यह गर्मी समुद्र से वायुमंडल में जाती है। जिसका प्रतिबिंब पृथ्वी की सतह पर भी तापमान बढ़ने के तौर पर देखा जाता है। इसलिए यह आमतौर पर माना जाता है कि जब भी अल नीनो अस्तित्व में होता है तब समान्यतः पूरे ग्लोब पर गर्मी बढ़ती है।
यही कारण है कि सबसे अधिक गर्मी के रिकॉर्ड उसी दौरान बनते हैं। ऐसे में इस साल अल नीनो के ना होने के बावजूद मार्च का दूसरा सबसे गर्म महीना होना उल्लेखनीय हो जाता है।
यह हम सभी जानते हैं कि कार्बन डाइऑक्साइड का अत्यधिक उत्सर्जन वैश्विक जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग का बड़ा कारण है। इसकी वजह से तापमान लगातार बढ़ता जाता है। इस समय कोरोना वायरस कि वैश्विक महामारी के बीच भारत सहित दुनिया के तमाम बड़े देशों में लॉक डाउन चल रहा है। यानि सामान्य जनजीवन पूरी तरह से ठप है। कार्बन उत्सर्जन बहुत कम हो रहा है। इससे कुछ उम्मीद जगती है कि तापमान बढ़ाने में कार्बन की जो भूमिका होती है कम होगी लेकिन यह उल्लेखनीय अंतर नहीं ला पाएगी।
इस बीच यह भी उल्लेखनीय है कि दुनिया के तमाम मॉडल संकेत कर रहे हैं कि सितंबर आते-आते यानी आगामी सर्दियों के आरंभ से पहले ला नीना की कंडीशन प्रशांत महासागर में आ सकती है। यानी समुद्र की सतह का तापमान औसत के आसपास रहेगा। विश्व की तमाम एजेंसियां जिसमें ऑस्ट्रेलिया की ब्यूरो ऑफ मैट्रोलोजी यानी बॉम, नासा, नोवा और यूकेमेट का यह मानना है कि सितंबर तक नीनो 3.4 रीजन में समुद्र की सतह का तापमान औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस नीचे ही रहेगा।
प्रशांत महासागर के नीनो 3.4 रीजन में समुद्र की सतह का तापमान जब तक औसत से 0.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर नहीं बढ़ता तब तक अल नीनो नहीं माना जाता है। यानि 0.5 डिग्री थ्रेसहोल्ड वैल्यू है। बॉम 0.8 डिग्री सेल्सियस को थ्रेसहोल्ड वैल्यू मानती है।
इन परिदृश्यों के बीच 2020 के अब तक के सबसे गर्म वर्ष होने के आसार 50-50 हैं। ऐसे में हमें इंतजार करना होगा और यह देखना होगा कि स्थितियां किस तरह से बदलती है।
Image credit: ABC7 Chicago
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