दक्षिण-पश्चिम मानसून का आधा सीजन बीत चुका है। इस समय मानसून की स्थिति काफी अनिश्चित है। पूरे देश में बारिश का वितरण असमान रूप से हुआ है। चार मुख्य क्षेत्रों में बारिश का वितरण असमान रहा है। वहीं, कम से कम 11 मौसम संबंधी उप-विभाजनों में 30% -40% तक बारिश की कमी दर्ज की गई है। जबकि, केंद्रीय और प्रायद्वीपीय क्षेत्र में सामान्य से अधिक वर्षा हुई है।
असमान बारिश का प्रभाव: इस वर्ष के मानसून में स्थान और समय के आधार पर भारी अंतर देखा गया है। कुछ क्षेत्रों में बारिश की कमी होने से फसलों और जल संसाधनों पर प्रभाव पड़ सकता है, जबकि कुछ क्षेत्रों में सामान्य से अधिक बारिश होने के कारण बाढ़ जैसी स्थिति भी बन गई है। इस तरह बारिश का अनिश्चित और असमान वितरण मानसून की भविष्यवाणी(पूर्वानुमान) और इसके प्रभावों के आकलन में चुनौतियाँ पेश करता है।
कही ज्यादा, कही कम बारिश: उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ में बारिश की कमी रही है। सिक्किम और उप हिमालयी पश्चिम बंगाल को छोड़कर, पूर्वोत्तर क्षेत्र में मानसूनी बारिश सामान्य से कम रही है। वहीं, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में बारिश की कमी 32% रही है, जबकि अरुणाचल प्रदेश में यह 18% नीचे है। गौरतलब है, जून में उत्तर और पूर्वी हिस्सों में सूखे की स्थिति और जुलाई महिने में महाराष्ट्र व गुजरात में बाढ़ की स्थिति से मानसून का वितरण असंतुलित हो गया है।
कई फसलों को नुकसान: बारिश के इस असमान वितरण और कमी ने देश के धान उत्पादक क्षेत्रों किसानों और सरकार दोनों को तनाव में डाल दिया है। वहीं, जुलाई में हुई अत्यधिक बारिश ने दक्षिण में कॉफी की फसल की संभावनाओं को नुकसान पहुंचाया है। वहीं, उत्तर में चाय उगाने वाले क्षेत्रों में प्रतिकूल मौसम की स्थिति ने चाय क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है।इस असामान्य मौसम और असमान बारिश के कारण कृषि क्षेत्र में कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो रही हैं।
जून की कमी जुलाई में पूरी: जून में मानसून मौसम प्रणालियों की कमी और जुलाई में इन प्रणालियों की असामान्य दिशा के कारण उत्तर और मध्य भारत के मैदानी इलाकों में बारिश का वितरण असंतुलित हो गया है। निम्न दबाव और चक्रवाती परिसंचरण की एक श्रृंखला महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के मानसूनी वर्षा आधारित क्षेत्र में चली गई है। परिणामस्वरूप, इन क्षेत्रों को पिछले सालों की तरह निरंतर सूखे के डर से राहत मिली है।
देश में सामान्य से अधिक बारिश: जुलाई में देशभर में लगभग 10% अधिक बारिश हुई, जिससे जून में 11% वर्षा की कमी की भरपाई हो गई। गौरतलब है, मानसून सीजन के आधे रास्ते में मौसमी बारिश 'ब्रेक ईवन' बिंदु के बहुत करीब है। पूरे भारत में सामान्य वर्षा 446 मिमी के मुकाबले 454 मिमी हुई है, जो औसत से 8 मिमी अधिक है। इस प्रकार मानसून की स्थिति अब अधिक संतुलित है। अब तक की बारिश सामान्य से थोड़ा अधिक है, जिससे किसानों और मौसम विशेषज्ञों को राहत मिली है।
मानसून पर समुद्री स्थितियों का प्रभाव: भारतीय मानसून काफी हद तक सुदूर प्रशांत महासागर और नजदीकी हिंद महासागर की स्थितियों से नियंत्रित होता है। इस साल की शुरुआत में अपेक्षित ला नीना (La Nina) की स्थिति, जो मानसून के दौरान होने की उम्मीद थी, अब देरी से आने की संभावना है। पूर्व में देखे गए ENSO न्यूट्रैलिटी (ENSO स्थिरता) कुछ महीनों तक चलती है। इसलिए, कमजोर ला नीना सितंबर के अंत या अक्टूबर में आ सकती है। हालांकि, इसके आने पर भी इसके प्रभाव को महसूस करने में समय लग सकता है।
मानसून के समर्थन में कमी: हिंद महासागर डिपोल (IOD) ने भी मानसून के दौरान सकारात्मक होने की पूर्व भविष्यवाणी को भी नकार दिया है। IOD सूचकांक की विसंगति लगातार नकारात्मक बनी हुई है, हालांकि यह न्यूट्रल थ्रेशोल्ड (सीमा) के भीतर है। किसी भी स्थिति में साल के इस समय में मॉडल की सटीकता भी कुछ सप्ताहों के बाद कम होती है। यह माना जा सकता है कि दोनों समुद्री पैरामीटर ला नीना और IOD, मानसून सीजन के दूसरे हिस्से में दक्षिण पश्चिम मानसून को किसी भी तरह का पूरा समर्थन नहीं दे सकते है। इसके बावजूद, पृथ्वी ग्रह की सबसे बड़ी वैश्विक प्रणाली दक्षिण-पश्चिम मानसून में सभी बाधाओं के बावजूद एक संतोषजनक सामान्य मौसम को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त आंतरिक ऊर्जा है।