प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल की बारिश से हुये नुकसान के एवज में किसानों को सहायता राशि बढ़ा दी है। संशोधित घोषणा के अनुसार अब एक एकड़ के लिए 6800 से 13500 रुपये की सहायता केंद्र की ओर से जारी की जाएगी। मुआवजे के लिए न्यूनतम सीमा को भी घटाकर 33 फीसदी किया गया है। अब जिन किसानों की 33 प्रतिशत से अधिक फसल बर्बाद हुई है वो सरकार से मुआवजा लेने के हकदार होंगे। गैर सिंचित फसल के नुकसान के बदले 6800 रुपये जबकि सिंचित फसल के नुकसान के एवज में 13500 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से किसानों को मिलेंगे। इसके अलावा बागवानी वाली फसलों के लिए राहत 12000 से बढ़ाकर 18000 रुपये की गई है। बागवानी की श्रेणी में फल, सब्जी और फूलों की खेती आती है।
1 मार्च से 1 अप्रैल 2015 के दौरान पूरे देश में औसत के 32.1 मिमी के मुक़ाबले 62.5 मिमी बारिश हुई है। यानि की 95 फीसदी अधिक वर्षा हुई। फरवरी 2015 में भी कई जगहों पर वर्षा दर्ज की गई लेकिन कृषि को सबसे अधिक नुकसान मार्च महीने में और अप्रैल के पहले हफ्ते की बारिश और ओलावृष्टि से हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 113 लाख हेक्टेयर में फसलें बर्बाद हुई हैं। जिनमें गेहूं, सरसों, चना और मक्का से लेकर मूँगफली, सोयाबीन और आलू सहित तमाम फसलें शामिल हैं।
फसलों को नुकसान का अंदाज़ा अधिक प्रभावित हिस्सों में बारिश के आंकड़ों को देखकर लगाया जा सकता है। 1 मार्च से 1 अप्रैल के बीच उत्तर प्रदेश में 11.7 मिमी औसत से 468 प्रतिशत अधिक और हरियाणा में 12.8 के औसत के मुक़ाबले 461 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। इसी तरह पंजाब में 168 प्रतिशत, पूर्वी राजस्थान में 1373 प्रतिशत, पश्चिमी मध्य प्रदेश में 1050 प्रतिशत, मध्य महाराष्ट्र में 1287 प्रतिशत और उत्तरी कर्नाटक में 405 प्रतिशत, पूर्वी उत्तर प्रदेश में 398 प्रतिशत अधिक बारिश दर्ज की गई जिसने खेतों में खड़ी और लगभग कटाई-मड़ाई के लिए तैयार फसल को तबाह कर दिया। इस भयावह नुकसान ने किसानों की कमर तोड़ दी है। हालांकि केंद्र से लेकर-अलग अलग राज्यों की सरकारें किसानों को राहत देने कि कोशिश में लगी हैं, लेकिन ये कोशिश कितनी यथार्थ में बदलती हैं और किसानों को मानसिक और आर्थिक पीड़ा से उबारने में कितनी कामयाब होती हैं ये तो वक़्त ही बताएगा।