फसलों के नुकसान के आकलन की पुरानी पद्धति पर हमारी निर्भरता संभवतः पहले से ही अप्रासंगिक हो चुकी है। इस समय ज़रूरत ऐसी उच्च तकनीकि की है जो तेज़ हो, किफ़ायती हो और तुलनात्मक रूप में अधिक भरोसेमंद भी हो। सरकार को फसलों की बुआई का रकबा, फसल की उत्पादकता और यहाँ तक कि फसल के नुकसान को समझने के लिए दूर संवेदी तकनीकि यानि रिमोट सेन्सिंग टेक्नोलॉजी के उपयोग पर ध्यान देना चाहिए।
वर्तमान समय में फसल की उत्पादकता और नुकसान के आंकलन के लिए कृषि मंत्रालय एक संस्थागत ढांचे पर निर्भर है। लेकिन इस समय जमीनी स्तर के इस तंत्र से अधिकांश मामलों में प्राप्त होने वाले शुरुआती आंकड़े अनुमान पर आधारित होते हैं। साथ ही आंकड़ों का संकलन करने वाले अधिकारी/कर्मचारी द्वारा आंकड़ों की यथार्थता में छेड़छाड़ की जाती है। आंकड़ों को इकठ्ठा करने में त्रुटि भी आम बात है, और जब बड़े पैमाने पर आंकड़े इकठ्ठा किए जाते हैं तब बड़ा अंतर दिखाई पड़ता है।
अतः सरकार लगभग 4 आंकलन तैयार करती है, जिससे अंतिम आंकड़े आने में लगभग 1 साल की देरी हो जाती है। आमतौर पर प्राथमिक आंकलन और अंतिम आंकलन के आंकड़ों में भारी अंतर होता है। इससे मांग और आपूर्ति का पूरा क्रम प्रभावित होता है और परिणामस्वरूप किसान तथा उपभोक्ताओं को नुकसान उठाना पड़ता है। फसल के नुकसान की भरपाई तय करने में होने वाली देरी भी इस प्रक्रिया की एक और बुनियादी असंगति है। भारत में सरकार जब तक आंकलन पूरा न कर ले किसानों को इंतज़ार करना पड़ता है। परिणामस्वरूप ये अप्रासंगिक प्रतीत होने लगता है।
लेकिन अगर सरकार रिमोट सेन्सिंग टेक्नॉलॉजी लागू करे तो यह सब बदल सकता है। उपग्रह संचालित यह तकनीक अब काफी पुरानी हो चुकी है। बीते समय में इसमें जो प्रगति हुई है उससे फसल उत्पादकता और फसल नुकसान का आंकलन सस्ता, सरल और सटीक होगा। इस तकनीक की मदद से फसल द्वारा परावर्तित होने वाली रंगीन तस्वीरों पर आधारित वेबलेंथ या सीधी तस्वीरों के आधार पर आसानी से आंकलन किया जा सकता है। यह फसल की अलग अलग अवस्थाओं पर किया जा सकता है। फलस्वरूप फसल उत्पादकता और कुल उत्पादन के आंकलन के लिए आंकलनकर्ता के पास कटाई मड़ाई के समय की एक स्पष्ट तस्वीर होती है।
खराब मौसम और कीड़ों या रोगों के व्यापक संक्रमण के कारण भी होने वाले फसल के नुकसान में यही तकनीक इस्तेमाल की जा सकती है। राजस्व मानचित्र के साथ उपग्रह चित्रों की तुलना करने पर फसल के नुकसान को समझने में मदद मिलती है। इससे मुआवज़ा निर्धारित करने की प्रक्रिया तेज़ी से हो सकेगी साथ ही मांग तथा आपूर्ति का पूरा परिदृश्य समझने में यह बेहद कारगर होगी। इस तकनीक से किसानों को अनाज का संग्रहण करने या बेचने तथा अगली बोई जाने वाली फसल के बारे में महत्वपूर्ण फैसले करने में मदद मिलेगी।
फसल के आकड़ों के संग्रहण और विश्लेषण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) राष्ट्रीय रिमोट सेन्सिंग सेंटर (NRSC) के साथ मिलकर एक मॉडल विकसित कर सकती है। कृषि आंकड़ों के आधुनिक संग्रहण से ना केवल संरचनात्मक बदलाव आएगा बल्कि कृषि क्षेत्र में मानव संसाधन की क्षमता का भी निर्माण होगा। भारतीय कृषि के लिए लागत प्रभावित तंत्र किसी वरदान से कम नहीं होगा।
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