बीते कई दिनों से पंजाब और हरियाणा सहित उत्तर-पश्चिम भारत के कई इलाके शीतलहर की चपेट में हैं। कड़ाके की ठंड का बुरा असर फसलों के अलावा सब्ज़ियों और फलों की खेती पर भी पड़ा है। इन राज्यों में बड़े पैमाने पर नुकसान की आशंका है।
उत्तर भारत में आ रहे एक के बाद एक पश्चिमी विक्षोभों के चलते पर्वतीय स्थानों पर भारी बर्फबारी हो रही है। पहाड़ों से होकर मैदानों तक पहुँचने वाली उत्तर-पश्चिमी बर्फीली हवाओं के प्रभाव से दिन के तापमान में बढ़ोत्तरी नहीं हो रही है जिससे पंजाब और हरियाणा में दिन में भी शीतलहर जैसे हालत बने हुए हैं।
पंजाब और हरियाणा में अब तक के आंकलन के अनुसार गेहूं और सरसों की अगड़ी फसल का 1 से 2 प्रतिशत नुकसान मौसम संबंधी स्थितियों के चलते हो चुका है। हालांकि देर से (नवंबर-दिसम्बर में) बोई गई फसल को कड़ाके की ठंड से फायदा होता है क्योंकि इससे फसल का विकास अच्छा होता है और पैदावार की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन इस समय कड़ाके की ठंड के साथ-साथ कोहरे और बीच-बीच में आए बादलों के चलते सब्ज़ियों और फलों पर बुरा असर पड़ा है। अगर कोहरा लगातार कई दिनों तक बना रहता है तो फसलों को और नुकसान हो सकता है क्योंकि कोहरे के चलते धूप नहीं मिल पाती और पौधों का विकास अवरुद्ध होता है। धूप के ज़रिए होने वाली फोटो सिंथेसिस की प्रक्रिया अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक है।
लगातार कई दिनों तक रहने वाले कोहरे और कुहासे के प्रभाव से आलू की फसल में लेट ब्लाइट जैसे रोग के संक्रमण का खतरा रहता है। हालांकि अक्टूबर के पहले सप्ताह में यानि अगड़ी आलू की फसल को कोई नुकसान नहीं हुआ है क्योंकि आलू की अगड़ी फसल पहले ही परिपक्व हो चुकी है। लेकिन नवंबर के दूसरे पखवाड़े या दिसम्बर में बोई गई आलू की फसल को नुकसान हुआ है। आमतौर पर नवंबर और दिसम्बर में बोई जाने वाली आलू की फसल इस समय वानस्पतिक वृद्धि की अवस्था में होती है। वर्तमान आंकलन के अनुसार आलू की फसल को 5-10 प्रतिशत का नुकसान हो चुका है।
आलू की फसल में नुकसान का मुख्यतः पाला पड़ने के चलते हुआ है। तापमान में अचानक और तेज़ी से आने वाली गिरावट के कारण ओस जम जाती है और पौधों पर बर्फ की एक पतली सी परत के रूप में दिखाई देती है जिसे पाला कहा जाता है। पाला के चलते पौधों में फोटोसिंथेसिस की प्रक्रिया बाधित होती है और पौधे पीले पड़ जाते हैं। इस स्थिति को अँग्रेजी में कोल्ड-बर्निंग कहा जाता है। आलू के अलावा, मटर, टमाटर और शिमलामिर्च की फसलों को भी पाला इसी तरह से नुकसान पहुंचता है। हरियाणा के कैथल ज़िले में सरसों की फसल में लगभग 5-10 प्रतिशत पौधे माहू रोग की चपेट में हैं।
सौभाग्य से चंडीगढ़ में फसल ऐसे नुकसान से बच गई है क्योंकि यहाँ हुई अच्छी वर्षा के बाद कोहरा छाया रहा जिससे पाला फसल को नुकसान नहीं पहुंचा सका। केंद्रीय आलू शोध संस्थान, सीपीआरआई के पूर्व निदेशक डॉ बीर पाल सिंह ने बताया कि सर्दियों में अच्छी बारिश के बाद क्षेत्र विशेष में लगातार कोहरे का बने रहना फसलों के लिए अच्छा होता है क्योंकि यह फसलों के ऊपर एक पतली परत बना देता है जिससे पाला फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाता है।
उत्तर भारत में आने वाले पश्चिमी विक्षोभों के चलते अगले कुछ दिनों के दौरान मैदानी भागों में पारा बढ़ेगा लेकिन 28 जनवरी से फिर से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में तापमान में गिरावट होगी। जनवरी के अंत तक मौसम फसलों के लिए चुनौतीपूर्ण बना रहेगा है।
Image Credit: Grain research and development corporation
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