अप्रैल में जब रबी फसलें लगभग कटाई-मड़ाई के लिए तैयार थीं, ऐसे में उत्तर भारत के कई राज्यों में बे-मौसम बरसात और ओलावृष्टि ने तबाही का तांडव खेला जबकि दक्षिण में तमिलनाडु के किसानों को इससे फायदा पहुंचा। हालांकि इन राज्यों में भी हल्दी, केला और दलों जैसी फसलों को कुछ नुकसान ज़रूर हुआ है लेकिन बे-मौसम बरसात ने तमिलनाडु के किसानों को नुकसान कम फायदा ज़्यादा पहुंचाया है।
स्काइमेट के अनुसार तमिलनाडु में मार्च से लेकर 6 मई तक समान्यतः 86 मिली बारिश दर्ज की जाती है। लेकिन इस वर्ष 6 मई तक राज्य में 136.5 मिमी बारिश पहले ही हो चुकी है जबकि अगले 25 दिनों में 50 मिमी और बारिश की संभावना है।
शुक्र है कि इस दौरान पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान की तरह तमिलनाडु के किसानों को नुकसान नहीं उठाना पड़ा है। अब ये कहने में कोई हिचक नहीं है कि जिस बे-मौसम बरसात ने उत्तर में रबी फसल को व्यापक नुकसान पहुंचाया था उससे तमिलनाडु सुरक्षित बचकर निकल आया है। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि देश के उत्तर में रबी फसलों की कटाई-मड़ाई मार्च और अप्रैल में होती है जबकि तमिलनाडु में ज़्यादातर कटाई-मड़ाई का काम जनवरी में पूरा कर लिया जाता है। हालांकि तमिलनाडु में भी जिन किसानों ने कटाई का कार्य देर से करने की योजना बनाई थी उन्हें कुछ नुकसान उठाना पड़ा।
तमिलनाडु में धान, गन्ना, हल्दी और सब्जियों सहित प्रमुख फसलों की बुआई इस समय की जा रही है। इसलिए राज्य में हो रही बारिश से मिट्टी में नमीं पर्याप्त मात्र में उपलब्ध रहेगी और अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों के लिए ये लाभदायक होगी। साथ ही कीटनाशकों और फोस्फोरस तथा नाईट्रोजेन जैसे कई पोषक तत्वों को मिट्टी अच्छी तरह से अवशोषित कर लेती है। समान्यतः खेतों की सिंचाई के लिए बिजली का इस्तेमाल करना पड़ता है, जबकि सिंचाई और बारिश के अभाव में मिट्टी शुष्क और सख्त हो जाती ही। बारिश धान के पौधे को भी सूख जाने से रोकती है।
इन सबके बावजूद राज्य में नुकसान भी हुआ है। काला चना जैसी दालों की लगभग 1000 एकड़ की खेती और तूर की 600 एकड़ की फसल को निरंतर हो रही बारिश से नुकसान पहुंचा है, जिसने किसानों को खेतों से पानी निकालने तक की मोहलत भी नहीं दी। साथ ही केले की फसल को नुकसान पहुंचा है, केले के तने या तो टूट गए या मुड़ गए। कपास और हल्दी के खेतों में भी पानी लग गया। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय ने पहले ही किसानों से मुआवज़े की मांग उठाने के लिए कहा था। लेकिन क्षति बड़े पैमाने पर नहीं है इसलिए किसानों को बीमा से लाभ मिलने में संदेह है।
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