इंटरनेशनल ग्रेन काउंसिल यानी आई जी सी ने 2017-18 में भारत में चावल के उत्पादन में 10 फ़ीसदी बढ़ोतरी का अनुमान जताया है। काउंसिल के अनुसार भारत में वर्ष 2017-18 के फसल वर्ष में कुल 11 करोड़ टन चावल का उत्पादन हो सकता है। इस अनुमान के आधार पर विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस वर्ष व्यापक मात्रा में चावल का निर्यात कर सकता है। गौरतलब है कि भारत सरकार ने अपने अनुमान में 2017-18 के फसल वर्ष के दौरान कुल 27.3 करोड़ टन खाद्यान्न उत्पादन का अनुमान व्यक्त किया है।
आगामी फसल वर्ष जुलाई से शुरू होगा और जून 2018 में संपन्न होगा। इसमें चावल और गेहूं के अलावा अन्य खाद्यान्न भी शामिल हैं। जिनमें चना, मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि फसलें आती हैं। भारत सरकार और इंटेरनेशनल ग्रेन काउंसिल यानी अंतर्राष्ट्रीय अनाज परिषद का खाद्यान्न उत्पादन का यह अनुमान अच्छे मॉनसून की संभावनाओं को देखते हुए लगाया गया है।
हालांकि स्काईमेट ने अपने अनुमान में इस वर्ष मॉनसून का प्रदर्शन थोड़ा सुस्त रहने की संभावना व्यक्त की है। स्काइमेट के मॉनसून पूर्वानुमान के अनुसार आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश जैसे कृषि प्रधान राज्यों में बारिश का वितरण असंतुलित हो सकता है, जो कृषि को नकारात्मक रूप में प्रभावित कर सकता है। स्काइमेट के अनुसार इस वर्ष मॉनसून का प्रदर्शन सामान्य से 5% कम लगभग 95% के आसपास रहने की संभावना है।
भारतीय मौसम विभाग ने 96 प्रतिशत बारिश होने की संभावना अपने मॉनसून पूर्वानुमान में जताई है। स्काईमेट और आईएमडी के मॉनसून पूर्वानुमान में विशेष अंतर नहीं है लेकिन भारतीय मौसम विभाग के मॉनसून पूर्वानुमान को भारतीय मीडिया में काफी सकारात्मक रूप में लिया जा रहा है और ऐसा माना जा रहा है कि इस बार मॉनसून अच्छी बारिश दे सकता है। जबकि स्काइमेट के मौसम विशेषज्ञों की अगर मानें तो कुछ ऐसे मौसमी परिदृश्य हैं जो संकेत कर रहे हैं कि मॉनसून का प्रदर्शन पिछले वर्ष की तुलना में कमजोर हो सकता है।
किसानों को सुझाव है कि मॉनसून के संभावित नकारात्मक प्रदर्शन को ध्यान में रखते हुए बुआई के लिए कम पानी वाली क़िस्मों का इस्तेमाल करें। कम पानी वाली चावल की क़िस्मों का इस्तेमाल अच्छी उपज पाने के लिए बेहतर उपाय हो सकता है। इसके साथ-साथ बारिश के अलावा सिंचाई के वैकल्पिक साधनों को भी तैयार रखें ताकि कम बारिश की स्थिति में फसल से बेहतर उत्पादन लिया जा सके।
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