सर्दियों में दुधारू पशुओं को हो जाती है ये 5 खतरनाक बीमारियां, इन तरीकों से किसान करें बचाव

January 5, 2024 5:16 PM | Skymet Weather Team

सर्दी लगातार बढ़ती जा रही है। न्यूनतम तापमान कम होने के साथ मौसम पालतू पशुओं के लिए खतरनाक हो जाता है। दिसम्बर-जनवरी के महिने में शीतलहर और ठंडी हवाओं से दुधारू पशुओं को ठंड लगना, निमोनिया, दस्त, अफारा रोग, खुरपका, मुंहपका, गलघोटू जैसे खतरनाक भी हो जाते हैं।  जिसमें पशुओं की जान तक चली जाती है। ऐसे में पशुपालकों को आर्थिक नुकसान होता है और कभी-कभी उनकी आजीविका पर संकट गहरा जाता है। 

ठंडेला होने पर करे ये काम: सर्दियों में दुधारू पशुओं को जरा सी लापरवाही से ठंड लग जाती है। जिसका असर दुध उत्पादन पर पड़ता है। ठंड लगने पर पशुओं की नाक बंद हो जाती है और उन्हे सांस लेने में परेशानी होने लगती है। इसे ठंडेला रोग भी कहते है।

उपचार: नाक बंद होने पर पशुपालक एक बड़ी बाल्टी में गर्म खौलता हुआ पानी लें और उसके ऊपर घास रख दें. इसके बाद पशु की नाक पर एक मोटा कपड़ा रखे, जिससे गर्मा पानी से निकलती भाप बंद नाक को खोल सके. लेकिन, ये विधि करते हुए विशेष ध्यान रखे की पशु गर्म पानी से जले नहीं। इसके अलावा पशुपालक अजवाइन, धनियाँ और मेथी को कूटकर पानी में उबाल लें। हल्का गर्म रहने पर साजी मिलकर पशु को पिला दे। इससे पशु को ठंड में आराम मिलेगा। छोटे पशुओं बछड़े-बछियां, भेड़ और बकरी के लिए इस मिश्रण की एक चौथाई मात्रा दें।

अफारा रोग होने पर खिलाएं गुड़: अगर किसी दुधारू पशु को अफारा रोग हुआ है, तो पशुपालक की लापरवाही का नतीजा है। क्योंकि, सर्दियों में पशुपालक गाय-भैंस को ज्यादा हरा चारा, बचा खाना या फिर खराब आहार दे देते हैं।  जिससे पशुओं में अफारा रोग की समस्या हो जाती है। अफारा रोग में दुधारू पशु जैसे गाय- भैस के पेट में गैस बनने लगती है, जिससे पशु परेशान होकर चिड़चिड़ा हो जाता है। 

उपचार:पशुपालक पशुओं को अफारा रोग से बचाने के लिए घर में बचा हुआ खाना बहुत कम मात्रा में या फिर कभी-कभी ही दें। सर्दियों में गाय-भैंस को हरे चारे के साथ ज्यादा सूखा चारा और गुड़ भी खिलाएं। वहीं, अफारा होने पर पशु को सरसों के तेल में तारपीन का तेल मिलाकर दें इन तरीकों से पशु को अफारा रोग से बचाया जा सकता है।

थनैला की ऐसे करे पहचान: दुधारू पशुओं गाय, भैंस, ऊंटनी, बकरी के थन में सूजन, दर्द और कड़ापन, गर्म थन थनैला रोग के लक्षण हैं। इस रोग में थनों से फटा, थक्केयुक्त दही की तरह जमा हुआ दूध  निकलता है। दूध से दुर्गंध भी आने लगती है और थनों में गांठे पड़ जाती है। थनैला होने पर पशु खाना-पीना कम कर देते है और उन्हें बुखार आ जाता है। थनैला होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे- थन में चोट लगना, संक्रमित पशु के संपर्क में आना, विषाणु, जीवाणु, माइकोप्लाज्मा अथवा कवक। 

उपचार: बचाव के लिए दूध निकालने के बाद बीटाडीन रूई में भिगोकर थनों पर लगा दें। पशु के आसपास सफाई का विशेष रूप से ध्यान रखें। साथ पशु चिकित्सक से सलाह लेकर टीकारण जरूर कराएं

निमोनिया रोग में अपनाएं देसी नुस्खा: पशुशाला में हवा जाने पर और ओंस में बंधे होने पर पशु निमोनिया का शिकार हो जाता है। निमोनिया में गाय-भैंस सहित दुधारू पशुओं की आंक और नाक से पानी गिरने लगता है। पशु के सुस्त हो जाने के साथ बुखार भी आ जाता है। 

उपचार: पशुओं को देर शाम और रात में खुले आसमान के नीचे नहीं बांधे। तेज धूप या मौसम गर्म होने पर पशु को बाहर निकाले और नहलाएं। निमोनिया पीड़ित पशु को नौसादर, सौंठ एवं अजवायन को अच्छी तरह कूट कर 250 ग्राम गुड़ के साथ दिन में 2 बार दें। साथ ही टीकाकरण एवं एंटीबायोटिक्स इंजेक्शन भी लगवाएं। पशुओं की बिछावन को जरूर बदलते रहें, उसमें नमी नहीं होने दें।

खुरपका और मुंहपका है खतरनाक बीमारी: पशुपालकों को यह पता होना जरूरी है कि खुर-मुंह की बीमारी क्या है। इन दोनों बीमारी में पशु के खुर और मुंह में जख्म और छाले हो जाते हैं। इससे पशु को खाने और चलने में परेशानी होती है. सही से चारा नहीं खाने पर पशु के शरीर में कमजोरी आ जाती है. खुरपका और मुंहपका बीमारी किसी पशु को एक बार होने के बाद पूरे जीवन प्रभावित करती है। छोटे पशुओं को तो इस बीमारी में बचना लगभग नामुमकिन हो जाता है। इस बीमारी में छोटे पशुओं की सबसे ज्यादा मौत होती है.  खुरपका और मुंहपका बीमारी बैक्टरिया से होती है, यह एक पशु को होने पर उसके पास के दूसरे पशु को भी हो जाती है। दिसबंर से फरवरी तक यह रोग सबसे ज्यादा होता है।

उपचार: इस रोग के घरेलू उपाय के लिए हर दिन सुबह-शात पशु के मुंह और खुर के घाव को लाल दवाई या फिटकरी के घोल से साफ करें। लाल दवा या फिटकरी उपलब्ध नहीं हो तो नीम के पत्ते उबालकर ठण्डे हुए पानी से घावों की सफाई करें। साथ ही खुरों के घाव से कीड़े निकालने के बाद फिलाइल और मीठे तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर लगाएं। रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति बाड़े से बाहर आने पर हाथ-पैर साबुन से अच्छी तरह धो ले। जहां रोगी पशु की लार गिरी हो वहां पर कपड़े धोने का सोडा/चूना या फिनाईल डालें।

फोटो क्रेडिट: दैनिक भास्कर

यह खबर सामान्य जानकारी के आधार पर लिखी गई है। किसी भी तरह का उपाय करने से पहले पशु चिकित्सक से सलाह लें।

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