दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 2017 ने आंकलन और अनुमानों के बीच केरल में निर्धारित समय से 2 दिन पहले 30 मई को दस्तक दी। अब तक इसका पश्चिमी सिरा अपेक्षाकृत ज़्यादा सक्रिय रहा है बनिस्पत पूर्वी छोर के। दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 12 जून को पूर्वी और पश्चिमी दोनों तरफ तेज़ी से आगे बढ़ा। मॉनसून कर्नाटक के सभी क्षेत्रों, तटीय महाराष्ट्र, मध्य महाराष्ट्र, तेलंगाना के सभी भागों, दक्षिणी ओड़ीशा और पूर्वोत्तर भारत के सभी राज्यों में आगे बढ़ते हुए पश्चिम बंगाल के कोलकाता तक पहुँच गया।
मॉनसून की उत्तरी सीमा यानि एनएलएम इस समय वलसाड, नाशिक, परभणी, अदीलाबाद, नरसापुर, पारादीप, दिघा, कोलकाता और कृष्णानगर तक पहुँच गई है। मॉनसून का मुंबई में भी लंबे समय से इंतज़ार हो रहा था और आखिरकार 12 जून को मायानगरी में इसने दस्तक दी।
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स्काइमेट द्वारा जारी किए गए पूर्वानुमान के अनुसार मॉनसून 2017 का प्रदर्शन जून में संतोषजनक होगा। इस दौरान पश्चिमी तटीय भागों में अच्छी वर्षा होने की संभावना है। देश भर में 11 जून तक इस सीज़न की बारिश का आंकड़ा सामान्य से 18 प्रतिशत अधिक के स्तर पर बना रहा।
पिछले 66 वर्षों के बारिश के आंकड़े देखें तो 18 वर्ष ऐसे रहे हैं जब 90 से 100 प्रतिशत के बीच सामान्य मॉनसून वर्षा हुई। सामान्य मॉनसून के दौरान भी देश के 650 जिलों में से 10 प्रतिशत ज़िले ऐसे होते हैं जहां सूखा पड़ता है। गुजरात में हालात सबसे चिंताजनक होते हैं। राज्य के 60 प्रतिशत जिलों में सूखे की आशंका 50 प्रतिशत होती है। ऐतिहासिक आंकड़े जम्मू, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के लिए भी करते हैं इसी तरह के रुझान का संकेत। हालांकि बीते कुछ वर्षों से मध्य प्रदेश में बारिश बढ़ी है।
भारत में कृषि बड़े पैमाने पर बारिश पर निर्भर करती है। देश में महज़ 35 प्रतिशत कृषि क्षेत्र ही भरोसेमंद सिंचाई व्यवस्था पर निर्भर है। लेकिन जहां तक जलाशयों और बांधों का प्रश्न है तो इस बार स्थिति संतोषजनक है। देश में इस समय जलाशयों का स्तर बीते 10 वर्षों के औसत से ऊपर बना हुआ है।
देश में लगभग 65 प्रतिशत कृषि पूरी तरह से मॉनसून वर्षा पर निर्भर है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इन भागों में कृत्रिम सिंचाई का प्रबंधन नहीं है। इस वर्ष के मॉनसून के पूर्वानुमान संकेत करते हैं कि कृषि के लिए विशेष चुनौती नहीं रहने वाली है और औसत मॉनसून वर्षा कृषि के लिए अनुकूल होगी।
मॉनसून के समय पर आगमन के चलते विभिन्न फसलों की बुआई सामान्य समय पर होने का अनुमान है। हालांकि वर्ष 2016 में कुछ फसलों की अच्छी कीमत मिलने के चलते कुछ फसलों की बुआई का दायरा 5-10 प्रतिशत घट या बढ़ सकता है। जुलाई में फसलें अधिकांशतः विकास की अवस्था में होती हैं। इस वर्ष जुलाई में संतोषजनक मॉनसून वर्षा के चलते अनुमान है कि फसलों का विकास बेहतर होगा लेकिन सीज़न के आखिरी चरण तक अल-नीनो के उभरने का अनुमान है जिससे सितंबर में बारिश में कमी की आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है।
सितंबर में अधिकतर खरीफ फसलें परिपक्व होने की अवस्था में होती हैं ऐसे में बारिश में कमी अधिकतर फसलों के लिए चुनौती बन सकती है। हालांकि इस बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगा। मॉनसून के आखिरी चरण में बारिश में कमी अल-नीनो के विकसित होने और इंडियन ओशन डाइपोल के स्थिति पर निर्भर करेगा।
Image credit: Agritech
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