[Hindi] राजस्थान में अनुकूल मौसम के बीच कपास की बुआई शुरू

May 1, 2017 6:17 PM | Skymet Weather Team

राजस्थान भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्यों में शुमार है। राज्य के कुछ भागों में 2017-18 के खरीफ सीज़न के लिए कपास की बुआई का काम शुरू हो गया है जबकि कुछ स्थानों पर बुआई जल्द शुरू करने के लिए खेतों को तैयार किया जा रहा है। राजस्थान में लगभग 4 लाख 50 हज़ार हेक्टेयर में कपास बोई जाती है। खबरों के अनुसार हनुमानगढ़ ज़िले की हनुमानगढ़, संगरिया और पिल्लीबंगा तहसील में किसानों ने कपास की बुआई आरंभ कर दी है।

इस समय कपास की बुआई के लिए मौसम कमोबेस अनुकूल बना हुआ है। इससे पहले अप्रैल के शुरुआती 20 दिनों तक राज्य के अधिकतर इलाके लू में झुलस रहे थे। लेकिन लगभग 20 अप्रैल से राजस्थान के विभिन्न भागों में मौसमी हलचल हो रही थी जिससे बादलों का आना, धूलभरी आँधी और गरज के साथ अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय में हुई वर्षा से लू राहत मिली।

आने वाले दिनों में भी राजस्थान के कई इलाकों में मौसमी गतिविधियां संभव हैं। मध्य पाकिस्तान पर एक चक्रवाती हवाओं का क्षेत्र बना हुआ है। इसके अलावा हरियाणा से दक्षिण भारत तक एक ट्रफ रेखा बन गई है। इन सिस्टमों के चलते राजस्थान में 3 और 4 मई को अधिकांश स्थानों पर बादल छाए रहेंगे। इस दौरान कुछ स्थानों पर धूल भरी आँधी चलने तथा बादलों की गर्जना के साथ वर्षा होने की संभावना है।

मौसम को अनुकूल होता देख राजस्थान के कुछ भागों में किसानों ने कपास की बुआई का काम शुरू कर दिया है। प्राप्त खबरों के अनुसार अब तक 5-8 प्रतिशत कपास की बुआई हो चुकी है। अब तक सबसे अधिक बीटी कॉटन की किस्में जैसे RCH773 BG II (Rasi Seeds), 6588 (Shriram), 3028 (Ankur Seeds), Raghav (Nuziveedu Seeds), US-51 (US Agri Seed) and RCH 650 BG II (Rasi Seeds) बोई गई हैं।

श्रीगंगानगर में कपास मुख्य फसल के तौर पर बोई जाती है। श्रीगंगानगर में किसानों ने कपास की बुआई के लिए खेत तैयार करने का काम शुरू कर दिया है। स्काइमेट के कृषि सहायक अधिकारियों से मिली जानकारी के अनुसार श्रीगंगानगर में मई के दूसरे सप्ताह से कपास की बुआई शुरू होगी और मई के अंत तक इसकी बुआई का काम सम्पन्न हो जाएगा। अनुकूल मौसम को देखते हुए हमारा सुझाव है कि जल्द खेत तैयार करें और कपास की बुआई का काम निपटाएं। बुआई के लिए अच्छी और सुझाई गई क़िस्मों तथा विधियों का उपयोग करें।

Image credit: AgriFarming.com

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