देश में इस वर्ष गेहूं की बम्पर पैदावार की संभावना है, इसके चलते केंद्र सरकार गेहूं पर आयात शुल्क फिर से लगाने पर विचार कर रही है। गौरतलब है कि दिसम्बर में गेहूं की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने इसके आयात से शुल्क हटा लिया था ताकि मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके। उल्लेखनीय है कि अगर गेहूं पर आयात शुल्क अगर लगाया नहीं जाता है तो भारतीय गेहूं की कीमतों पर दबाव बना रहेगा जो किसानों के हित के खिलाफ होगा।
वर्ष 2016 में बेहतर मॉनसून के चलते रबी फसलों के लिए भी मौसम मुख्यतौर पर अनुकूल रहा। मॉनसून सीजन में मिट्टी में बेहतर नमी का प्रभाव आगे की फसलों पर भी देखने को मिलता है। गेहूं की इस बार 9 करोड़ 66 लाख टन पैदावार की संभावना है। बम्पर पैदावार के अनुमान को देखते हुए सरकार ने गेहूं पर फिर से आयात शुल्क लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया है। कृषि सचिव शोभना के पटनायक ने कल बताया कि सरकार ने 8 दिसंबर को गेहूं पर लागू 10 फीसदी आयात शुल्क हटकर शून्य कर दिया था।
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गेहूं की अगड़ी क़िस्मों की कटाई-मड़ाई शुरू होने के साथ ही इसकी आवक शुरू हो चुकी है। नए गेहूं की कीमतें मध्य प्रदेश और गुजरात की मंडियों में न्यूनतम समर्थन मूल्य के नीचे जा रही हैं जिससे किसानों की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है। सरकार ने कीमतों में और गिरावट की आशंका के मद्देनज़र गेहूं के आयात पर फिर से सीमा शुल्क लागू करने पर विचार मंथन शुरू कर दिया है।
गेहूं पर आयात शुल्क लगाया जाए या इसे आयात शुल्क मुक्त रखा जाए इस पर खाद्य मंत्रालय में विचार विमर्श की प्रक्रिया जारी है। मंत्रालय ने गेहूं के आयात को प्रतिबंधित करने पर भी अभी फैसला नहीं किया है। मंडियों में गेहूं की नई आवक पर भी खाद्य मंत्रालय की निगरानी है। आने वाले दिनों में गेहूं की आवक, इसकी गुणवत्ता और मांग तथा कीमतों को देखते हुए आगे के फैसले लिए जाएंगे।
Image credit: NewDP
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