मार्च-अप्रैल के दौरान हुई बे-मौसमी बरसात के कारण सब्जियों की खेती भी प्रभावित हुई है। आमतौर पर फरवरी से अप्रैल के दौरान की जाने वाली खेती से ही गर्मियों में हरी सब्जी की आपूर्ति होती है। एक ओर जहां बिन मौसम बरसात ने खाद्यानों की खेती तबाह की वहीं सब्जियों की खेती के लिए परिस्थितियाँ प्रतिकूल बना दीं। हालांकि मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार मौसम से सबसे ज़्यादा प्रभावित होने वाली आलू की कीमतें अभी अपेक्षाकृत नियंत्रण में हैं।
सब्जियों में सबसे अधिक असर टमाटर पर पड़ा है। टमाटर अपेक्षा से अधिक महंगा चल रहा है। स्काइमेट के अनुसार आने वाले दिनों में उत्तर भारत के भागों में मौसम उत्तरोत्तर गरम होता जाएगा जिससे इस मौसम में टमाटर की खेती करने वाले प्रमुख राज्यों हरियाणा और राजस्थान भी प्रभावित होंगे। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो कोमल होने के कारण टमाटर अधिक गर्मी की मार नहीं झेल पाता और इसे गर्मी तथा लू से बचाने के लिए काफी उपाय करने पड़ते हैं। गर्मी इसी तरह से आने वाले दिनों में भी अपना प्रचंड रूप दिखाएगी जिससे हरी सब्जियाँ और महंगी हो सकती हैं।
हालांकि सब्जियों की कीमतों को लेकर उद्योग संगठन एसोचैम द्वारा किए गए एक अध्ययन को देखें तो सब्जियों की थोक कीमतों में इस दौरान गिरावट हुई है जबकि खुदरा कीमतें ऊपर गईं हैं। प्याज़ की थोक कीमतें 2014-15 में बीते वर्ष के मुक़ाबले 32 फीसदी घटीं हैं लेकिन खुदरा मूल्यों में गिरावट आने की बजाय 28.9 फीसदी का इजाफा हुआ है। एसोचैम की रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में 2014-15 में सब्जियों के थोक भाव में गत वर्ष के मुक़ाबले 6.8 फीसदी की कमी आई लेकिन थोक मंडियों से लेकर खुदरा बाज़ारों तक बिचौलियों की कई कड़ी की वजह से आम खरीददार को इससे कोई फायदा नहीं पहुंच पा रहा है।